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मुता निकाह क्या है? मुता निकाह की योग्यता क्या है ? मुता निकाह का विधिक प्रभाव क्या है ? what is mutah nikah

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नमस्कार मित्रों,

आज एक इस  लेख में हम मुता निकाह के बारे में जानेंगे। मुस्लिम  होने वाले मुता को एक अस्थाई निकाह कहा गया है।  इस निकाह की एक अवधि निर्धारित रहती है। मुता निकाह की समाप्ति कैसी होती है इसको विस्तार से जानेंगे। मुता निकाह को लेकर कई सवाल है जैसे कि :-
  1. मुता निकाह क्या है ?
  2. मुता निकाह की आवश्यकताएं क्या है ?
  3. मुता निकाह का विधिक प्रभाव क्या है ?
इन सभी सवालों को विस्तार से समझे। 

मुता निकाह क्या है ? मुता निकाह की योग्यता क्या है ? मुता निकाह का विधिक प्रभाव क्या है ?

1. मुता निकाह क्या है ? 

मुता का अर्थ है उपभोग या उपयोग और निकाह का अर्थ दो सक्षम पक्षकारों के मध्य निकाह की संविदा पूर्ण कर निकाह करना।  मुता निकाह जो एक ऐसा निकाह जो कि केवल आनंद के लिए एक अस्थायी निकाह है जिनमे निकाह समय और पत्नी को देय मैहर की धनराशि निश्चित होती है। 

शिया विधि मुता निकाह को मान्यता देती है , क्योंकि मुस्लिम विधि की शिया विचार धारा पद्दति में केवल इथना  आशरिया शिया स्कूल द्वारा मुता निकाह एक मान्य एक अस्थायी निकाह है।  शिया विधि के अनुसार मुता निकाह की एक निश्चित अवधि का निश्चित होना अति आवश्यक लक्षण है। मूत निकाह की एक निश्चित अवधि हो सकती है 
  1. एक दिन ,
  2. एक पखवारा,
  3. एक महीना ,
  4. एक वर्ष ,
  5. कुछ निश्चित वर्षों कि हो सकती है।
लेकिन हैदराबाद उच्चा न्यायालय ने  शाहजादा खानम  बनाम फ़ख जहाँ  के अपने एक वाद में मुता निकाह की अवधि के सन्दर्भ में निर्णय दिया कि 
जीवनपर्यन्त मुता निकाह और एक ऐसा मुता निकाह जिसमे अवधि निश्चित नहीं है  दोनों में कोई भेद नहीं है अतः जीवनपर्यन्त मुता निकाह को निकाह मान लिया जायेगा।  

अब एक सवाल  उठता है कि क्या मुता निकाह कोई मुस्लिम किसी अन्य धर्म   की स्त्री से कर सकता है ?

 शिया विधि अंतर्गत एक मुसलमान पुरुष हिन्दू या किसी अन्य धर्म की स्त्री से मुता निकाह नहीं कर सकता है लेकिन मुस्लिम पुरुष  कितबिया यानी ईसाई , यहूदी  धर्म की स्त्री से मुता निकाह कर सकता है  यहाँ तक की एक पारसी स्त्री से भी  निकाह। 

कित्नु मुस्लिम स्त्री किसी  मुस्लिम पुरुष से मुता निकाह नहीं सकती है।  

2.  मुता निकाह की आवश्यक तत्व क्या है ? 

मुता निकाह की शिया समुदायों के मुसलमानों में मान्य है , इसके लिए आवश्यक तत्वों को निर्धारित किया गया कि  निम्न है :-
  1. दोनों पक्ष सक्षम हो ,
  2. मुता निकाह में प्रस्ताव स्वीकृति आवश्यक है। 
  3. मुता निकाह में साक्षियों की आवश्यकता नहीं होती है। 
  4. दोनों पक्षों की स्वतंत्र सहमति होनी चाहिए ,
  5. दोनों पक्षों की ओर से उनके संरक्षक मुता निकाह नहीं करा सकते। 
  6. मुता निकाह में दोनों पक्षकार प्रतिषिद्ध सम्बन्ध में नहीं होने चाहिए, क्योंकि ऐसा निकाह शून्य निकाह होगा। 
  7. मुता निकाह की  संविदा करते समय सम्बन्ध की अवधि निर्धारित होनी चाहिए जो कि चाहे एक दिन , पखवारा, एक महीना, एक वर्ष या कई वर्ष की हो। 
  8. मुता निकाह में मेहर का निश्चित होना आवश्यक है और यह मुता निकाह के समय ही निश्चित किया जाना चाहिए यदि मुता निकाह में मेहर की धनराशि तय नहीं तो निकाह शून्य होगा। 
  9. मुता निकाह में सम्बन्ध की अवधि निश्चित है परन्तु  मेहर की धनराषि निश्चित नहीं है तो मुता निकाह की संविदा शून्य होती है। 
  10. मुता निकाह में मेहर की धनराशि निश्चित हो जाये और संबंधों अवधि निश्चित न हो , तो संविदा मुता निकाह के रूप में शून्य होते हुए भी स्थायी निकाह के रूप में प्रवृत्त रह सकती है।  
  11. मुता निकाह में यह नियम नियम लागु नहीं होता है जो कि निकाह में पत्नियों की संख्या चार तक सिमित रहे। 
यदि मुता निकाह की संविदा निर्धारित अवधि के लिए तय होने के बाद भी पुरुष और स्त्री पति - पत्नी के रूप में साथ रहते चले जाएँ तो प्रतिकूल साक्ष्य के आभाव में ऐसी उपधारणा होगी कि निकाह की अवधि का विस्तार कर दिया है। 

3. मुता निकाह का विधिक प्रभाव क्या होगा ?

मुता निकाह का विधिक प्रभाव पति- पत्नी और उनसे पैदा होने वाली औरस संतान पर निम्न प्रकार से है :-
  1. पति-पत्नी के मध्य पारस्परिक उत्तराधिकार उत्पन्न नहीं होता। 
  2. यदि पति -पत्नी के मध्य पारस्परिक एकपक्षीय उत्तराधिकार के अधिकारों के विषय में स्पष्ट संविदा हो ऐसा उत्तराधिकार मान्य होगा। 
  3. मुता निकाह से पैदा हुई  संतान औरस होती है और ऐसी संतान को माता -पिता दोनों से उत्तराधिकार का अधिकार रखती है।  
  4. मुता निकाह में तलाक नहीं होता है , इसमें मुता निकाह के समाप्त होने के प्रकार है - मुता निकाह की अवधी की समाप्ति पर या आपसी सहमति से या पति -पत्नी में से किसी की मृत्यु हो जाने पर स्वतः निकाह विच्छेद हो जाता है या किसी पक्ष के छोड़ कर भाग जाने पर। 
  5. मुता निकाह में लैंगिक सम्बन्ध हो जाने पर पत्नी सम्पूर्ण मेहर की हक़दार होगी उसे ले सकेगी और यदि लैंगिक सम्बन्ध. नहीं हुआ है तो पत्नी आधे मेहर की हक़दार होगी।
  6. मुता निकाह में नियत अवधि  के भीतर सहवास नहीं होता है तो इद्दत की अवधि का पालन करना आवश्यक नहीं है , और यदि नियत अवधि के भीतर सहवास हुआ है. तो इद्दत की अवधि का पालन करना होगा जिसकी अवधि होगी 2 मासिक धर्म। पति की मृत्यु हो जाने पर यह इद्दत अवधि 4 माह 10 दिन की होगी और पत्नी के गर्भवती होने पर इद्दत अवधि गर्भावस्था तक जारी रहेगा। 
  7. मुता निकाह में तलाक मान्य नहीं मान्य नहीं होता है, पति यदि चाहे तो पत्नी को शेष अवधि का दान कर सकता है जिसे " हिबा इ मुद्दत कहते है। 
  8. यदि पत्नी नियत अवधि से पहले पति का त्याग करती है म तो पति मेहर की धनराशि अनुपातिक हिस्सा कम कर सकता है। 
  9. यदि मुता निकाह की अवधि की समाप्ति के बाद भी दोनों पक्ष एक साथ रहते है तो और सहवास भी करते है तो इसे जीवन पर्यन्त जा मुता निकाह मान लिया जायेगा। जीवन पर्यन्त निकाह के सम्बन्ध में न्यायालय ने अपना निर्णय शोहरत सिंह बनाम जाफरी बीबी 1915 के वाद में दिया।  
  10. मुता निकाह में पत्नी भरण पोषण प्राप्त करने की हक़दार नहीं होती है परन्तु भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता की धारा 144 के तहत भरण पोषण प्राप्त करने का दावा कर सकती है।  
 



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