निकाह क्या है और विधिमान्य निकाह के आवश्यक शर्ते क्या है ? what is Muslim marriage and valid condition of nikah in Muslims
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नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में हम मुस्लिम में निकाह के विधिमान्य आवश्यक तत्वों के बारें में जानेंगे कि आखिर ये विधिमान्य निकाह के आवश्यक तत्व क्या है ?
आवश्यक तत्वों को समझें इससे पहले हम निकाह को समझ ले।
निकाह क्या है ?
मुस्लिमों में निकाह एक विशुद्ध रूप से एक सिविल संविदा है जो की प्रस्ताव एवं स्वीकृत द्वारा गठित होती है , इसके गठित होने पर वे सभी अधिकार और दायित्व जो निकाह द्वारा सृजित होते है तत्काल एवं एक साथ ही पैदा हो जाते है।
मुस्लिम विधि के अनुसार निकाह को एक ऐसी सिविल संविदा के रूप में भी परिभाषित किया गया है कि जिसका उद्देश्य पति -पत्नी के मध्य सम्भोग तथा उसने पैदा हुई संतान को विधिमान्य बनाती है।
विधिमान्य निकाह के आवश्यक शर्ते तत्व।
मुस्लिम विधि में निकाह के आवश्यक तत्वों का उल्लेख किया गया है जो की निम्न :-
- प्रारूप।
- निकाह के क्षमता।
- सहमति।
- निकाह के संरक्षता।
- यौवनगमन का विकल्प।
- विधिक अनह्रता से ग्रसित न हो।
इन सभी को विस्तार से जानेंगे।
1. प्रारूप।
शिया व् सुन्नी समुदायों के सलामनों में निकाह के लिए एक आवश्यक तत्व प्रारूप को शामिल नहीं किया गया है।
मुस्लिम में निकाह किये जाने के लिए विशेष रूप से किसी भी प्रारूप की किसी भी प्रकार से कोई भी आवश्यतका नहीं पड़ती है , क्योंकि यह बहुत ही साधारण है इसके लिए धार्मिक रीति या किसी भी प्रकार कोई भी अनुष्ठान किया जाना आवश्यक नहीं है।
मुस्लिम निकाह में एक बहुत ही अनिवार्य तत्व प्रस्ताव तथा स्वीकृत है।
निकाह के लिए दो पक्षों का होना अनिवार्य है जिसमे निकाह के दौरान एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव तथा दूसरे पक्ष द्वारा उस प्रस्ताव की स्वीकृत दी जानी आवश्यक है और यह स्वीकृत दो पुरुषों अथवा एक पुरुष दो महिलाओं के समक्ष दी जानी आवश्यक है।
निकाह के प्रस्ताव तथा स्वीकृति के लिए पक्षकार का स्वस्थ्य चित्त एवं विवाह के लिए निर्धारित आयु के अनुसार व्यस्क होना आवश्यक है , वही पक्ष्कार बन सकते है।
एक पागल या अवयस्क के निकाह की दशा में उस पागल या अवयस्क की और से उसके संरक्षक द्वारा प्रस्ताव या स्वीकृत दी जा सकती है।
निकाह के लिए जो भी प्रस्ताव एवं स्वीकृत दी जाएगी वह एक साथ -साथ एक बैठक में ही दी जाएगी।
शिया समुदायों के मुसलमानों में निकाह की प्रस्ताव एवं स्वीकृत के दौरान गवाहों की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
2. निकाह की क्षमता।
शिया व् सुन्नी समुदायों के मुसलमानों में निकाह की क्षमता की उम्र के लिए भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875 के प्रावधान लागु नहीं होते है। मुस्लिम में निकाह के लिए लड़के ने 15 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो तथा 9 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो तो दोनों निकाह की संविदा करने के लिए सक्षम है।
3. सहमति।
- निकाह की संविदा के लिए एक आवश्यक तत्व सहमति को शामिल किया गया है , जिसमे दोनों पक्षों की सहमति अति आवश्यक है। ऐसा मुस्लमान जो स्वास्थ्यचित्त है तथा जिसने यौवनागम ( puberty ) को प्राप्त कर लिए है और ऐसे में निकाह की संविदा उसकी सहमति से किया जाता है तो ऐसा निकाह शून्य होगा। स्वास्थ्यचित्त एवं यौवनागम प्राप्त मुस्लिम के निकाह की संविदा में उसकी सहमति का होना अति आवश्यक है।
- यदि निकाह की संविदा पक्षकारों की सहमति बल अथवा धोखे से प्राप्त की जाती है , तो ऐसे में निकाह अविधिमान्य होता है जब निकाह की संविदा का अनुसमर्थन उस व्यक्ति द्वारा उसकी स्वतंत्र सहमति से न कर दिया जाये।
- मुसलमानों में निकाह की सहमति आत्यांतिक है। निकाह की संविदा के लिए पक्षकार ने वयस्कता प्राप्त नहीं की है , तो ऐसी में निकाह तभी विधिमान्य होगा जब उस निकाह की संविदा के लिए सहमति उसके संरक्षक द्वारा दे दी जाये।
- यदि निकाह की संविदा सहमति प्राप्त किये बिना निकाह हो जाता है , तो स्त्री के इच्छा के विरुद्ध हुए सम्भोग से निकाह का विधिमान्यकरण नहीं हो सकता है।
4. निकाह के संरक्षता।
मुस्लिम में निकाह की आवश्यक तत्वों में एक तत्व निकाह की संरक्षता है जिसका तात्पर्य यह कि एक अवयस्क या पागल की निकाह की संविदा निम्न व्यक्ति वरीयता क्रम से संरक्षक हो कर सकते है।
- पिता।
- पैतृक पितामह।
- भाई।
- माता।
- मामा।
5. यौवनगमन विकल्प।
यौवनगम का विकल्प जिसे उर्दू में ख्वार -उल- बुलग कहा जाता है। जिस अवयस्क का निकाह उसकी अवयस्कता के दौरान उसके संरक्षक द्वारा कर लिया गया है तो ऐसे में उस अवयस्क के पास यह अधिकार है कि वह अपनी वयस्कता को पूर्ण करने पर उस अवयस्कता पर हुए निकाह को अस्वीकार कर दे। इसी को यौवनगम का विकल्प कहते है।
मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम की धारा 2 के अंतर्गत किसी मुस्लिम कन्या का निकाह अवस्यकता के दौरान उसके संरक्षक द्वारा कर लिया गया है , तो वह मुस्लिम कन्या 18 वर्ष की उम्र पूर्ण करने से पहले ऐसे निकाह को अस्वीकार कर अपने पति से तलाक से सकती है।
6. विधिक अनर्हता से ग्रसित न हो।
मुस्लिम में निकाह को लेकर कुछ विधिक अनर्हता का उल्लेख किया गया है जो की ऐसी अनर्हता न हो -
- पत्नियाँ की संख्या।
- बहुपतियों की संख्या।
- एक कितबिया निकाह।
- इद्दत के चलते निकाह।
1. पत्नियों की संख्या - मुस्लिम समुदाय में मुस्लिम व्यक्ति एक समय पर चार पत्नियां रख सकता है। यदि मुस्लिम व्यक्ति चार पत्नियों के रहते पांचवी पत्नी से निकाह करता है तो ऐसा निकाह शून्य न होके अनियमित होगा। यह अनियमितता उनमें से एक पत्नी को तलाक देकर की जा सकती है।
2.बहुपति का होना - मुस्लिम व्यक्ति एक समय में चार पत्नियां रखक सकते है लेकिन स्त्री के मामले में ऐसा नहीं है। एक मुस्लिम स्त्री एक समय पर केवल एक ही पति रख सकती है एक से अधिक नहीं। बहुतपति पर ऐसा निकाह शून्य होगा तथा ऐसे निकाह से पैदा संतान अधर्मज कहलाएंगी। भातीय न्याय संहिता के अंतर्गत पक्षकार दंड के भागी होंगे।
3. एक कितबिया निकाह - एक मुस्लमान पुरुष एक मुस्लिम स्त्री से तो निकाह कर सकता है लेकिन वह एक कितबिया स्त्री से भी निकाह कर सकता है जिसमें यहूदी तथा ईसाई धर्म आती है। एक मुस्लिम पुरुष यहूदी तथा ईसाई धर्म की स्त्री से वैध निकाह कर सकता है लेकिन यदि यही निकाह एक ऐसे धर्म की स्त्री से करता है , तो कि मूर्तिपूजक या अग्नि पूजक है तो ऐसा निकाह शून्य न होकर अनियमित होगा।
लेकिम एक मुस्लिम स्त्री एक कताबिया पुरुष से विधिमान्य निकाह नहीं कर सकती है वे केवल एक मुस्लमान पुरुष से ही विधिमान्य निकाह कर सकती है। यदि मुस्लिम स्त्री किसी कितबिया तथा अग्निपूजक या मूर्तिपूजक पुरुष से विवाह पर भी लेती है तो ऐसा विवाह शून्य न होके अनियमित होगा।
4. इद्दत के चलते विवाह - इद्दत के चलते निकाह हो जाने पर ऐसा निकाह शून्य न होके अन्यमित होगा।
इद्दत क्या है ?
इद्दत काल एक ऐसा प्रतीक्षा का समय है जिसे उस स्त्री को मानना पड़ता है जिस स्त्री का निकाह पति की मृत्यु या तलाक से समाप्त हो जाता है। इस इद्दत कल की अवधि में मुस्लिम स्त्री अलग निवास करती है तथा न वह किसी पुरुष से शारीरक सम्बन्ध बना सकती है न ही वह दूसरा निकाह कर सकती है।
- विवाह विच्छेद तलाक द्वारा हुआ है तो इद्दत की अवधी 3 माह की होती है।
- यदि निकाह तलाक द्वारा विच्छेद हुआ हो पत्नी इद्दत काल मानने के लिए तभी बाध्य होगी निकाह में सम्भोग हुआ हो। यदि निकाह में सम्भोग नहीं हुआ है तो इद्दत का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होगी और वह स्त्री दूसरा निकाह कर सकती है।
- विवाह विच्छेद पति की मृत्यु से हुआ है तो इद्दत की अवधि 4 माह 10 दिन की होती है क्योंकि इसमें 40 दिन का समय मातम का शामिल कर लिया जाता है।
- यदि निकाह विच्छेद पति की मृत्यु के कारण हुआ है तो पत्नी इद्दत काल की अवधि को पूरा करने के लिए बाध्य है। चाहे निकाह में सम्भोग हुआ हो या न हुआ हो।
- यदि मुस्लिम स्त्री विवाह विच्छेद के समय गर्भवती है तो यह इद्दत काल बच्चे के पैदा होने तक चलता रहता है।
मुस्लिम स्त्रियों पर इद्दत काल के चलते दूसरे निकाह पर प्रतिबन्ध लगाने का मुख्य कारण यह है कि जिससे उस स्त्री के गर्भवती होने पर का सही सही पता चले सके तथा बच्चों के पितृत्व के बारे में किसी भी प्रकार का कोई भी भ्रम न रहे।
5. नातेदारी के आधार पर निकाह की विधिक निर्योग्यताएँ।
मुस्लिम समुदाय में विधिमान्य निकाह में एक और तत्व शामिल है जो की नातेदारी के आधार पर विधिमान्य निकाह। ये निम्न है -
- रक्त सम्बन्ध।
- निकाह संबंधों से उत्पन्न प्रतिषेध।
- पाल्य संबंधों से ( रिजा )
- अवैध संगम।
1. रक्त सम्बन्धी - एक मुस्लमान के निम्न रक्त सम्बन्ध में निकाह को प्रतिषेध किया गया है।
- माता या मातामही चाहे कितनी उच्च स्तर पर हो।
- पुत्री या पौत्री चाहे कितनी निम्न स्तर पर हो।
- अपनी पूर्ण रक्त , अर्द्ध रक्त या सहोदर रक्त से उत्पन्न हो।
- भतीजा या भतीजी।
- अपनी माामा , नानी , बुआ या दादी।
2. निकाह संबंधों से उत्पन्न प्रतिषेध।
- अपनी पत्नी के पूर्व या उसने अनुजों से।
- अपने अग्रज या अनुज की पत्नी से।
3. पाल्य संबंधों से।
एक मुस्लमान पाल्य संबंधों में निकाह करने के लिए प्रतिषेध है , यानी उसने जिस स्त्री का दूध पिया है उस पल्यामता , उसकी पुत्री या ऐसी लड़की जिसने पाल्य माता का दूध पिया हो उससे निकाह नहीं कर सकता है।
जो निकाह पाल्य सम्बन्धओं से वर्जित है और निकाह कर भी लेता है तो ऐसा निकाह शून्य होगा।
4. अवैध सम्बन्ध।
एक मुसलमान पुरुष एक ही समय पर ऐसी दो पत्नियों नहीं रख सकता जिन दोनों पत्नियों का आपस में रक्त का सम्बन्ध हो, पाल्य सम्बन्ध हो या निकाह संबंधों से सम्बंधित हो।
उदाहरण -
एक मुसलमान पुरुष ऐसी दो स्त्री से निकाह नहीं कर सकता जो आपस में सगी बहने है यदि ऐसा होता भी तो ऐसा निकाह शून्य न होकर अनियमित होगा।
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