नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि एक पंजीकृत अधिवक्ता का न्यायालय, क्लाइंट और विपक्षी के प्रति क्या कर्तव्य होगा ? राज्य विधिक परिषद में पंजीकृत प्रत्येक अधिवक्ता एक पेशेवर होने के साथ -साथ न्यायालय का अधिकारी भी होता है और न्याय प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। अधिवक्ताओं के उनके पेशेवर आचरण को नियंत्रित करने के लिए अधिवक्ता अधिनियम 1961 के प्रावधानों में नियम बनाए जाने का प्रावधान किया गया है। ये नियम न्यायालय , मुवक्किल और विपक्षी के प्रति अधिवक्ताओं के कर्तव्यों का उल्लेख करते है।
एक पंजीकृत अधिवक्ता का न्यायालय , मुवक्किल और विपक्षी के प्रति क्या कर्तव्य होगा ?
अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 15 बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया को नियम बनाने की शक्ति प्रदान करता है , जिसके तहत बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया न्यायालय , मुवक्किल और विपक्षी के प्रति अधिवक्ताओं के कर्तव्य पर नियम बना सकती है :-
1 न्यायालय के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्यों पर नियम।
2. मुवक्किल के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्यों पर नियम।
3. विपक्षी के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्यों पर नियम।
विस्तार से जाने।
1. न्यायालय के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्यों पर नियम।
- गरिमामय तरीके से कार्य करें।
- न्यायालय का सम्मान करें।
- न्यायिक अधिकारी से अकेले में बातचीत न करें।
- विपक्षी के प्रति अवैध तरीके से कार्य करने से इंकार करें।
- अनुचित साधनों पर जोर देने वाले मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व न करें।
- उचित ड्रेस कोड में दिखें।
- न्यायिक प्राधिकारी के समक्ष किसी भी तरह से उपस्थिति , कार्य , पैरवी या अभ्यास नहीं करना चाहिए यदि पीठ का एकमात्र या कोई सदस्य अधिवक्ता का रिश्तेदार है।
- यदि कोई अधिवक्ता किसी प्रतिष्ठान के प्रबंध का सदस्य है तो उसे किसी प्रतिष्ठान के पक्ष या विपक्ष में किसी न्यायिक प्राधिकारी के समक्ष या उसके समक्ष उपस्थित नहीं होना चाहिए।
- अधिवक्ता को किसी ऐसे मामले में कार्यवाई या पैरवी नहीं करनी चाहिए जिसमें उसके वित्तीय हित हो।
- मुवक्किल के लिए जमानतदार के रूप में खड़ा नहीं होना चाहिए।
2. मुवक्किल के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्यों पर नियम।
- संक्षिप्त विवरण स्वीकार करने के लिए बाध्य।
- मुवक्किल की सेवा करने से पीछे न हटना।
- अधिवक्ता उन मामलों में उपस्थित न हों जहां वह स्वयं गवाह हो।
- मुवक्किल को पूर्ण और स्पष्ट प्रकटीकरण करना।
- मुवक्किल के हितों को कायम रखें।
- सामग्री या साक्ष्य को न दबाएं।
- मुवक्किल और उसके मध्य हुए संचार का खुलासा न करें।
- अधिवक्ता को मुकदमेबाजी भड़काने या भड़काने वाला पक्ष नहीं होना चाहिए।
- अधिवक्ता को अपने मुवक्किल या मुवक्किल के अधिकृत एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के निर्देशों अपर कार्य नहीं करना चाहिए।
- अधिवक्ता मामलों की सफलता के आधार पर शुल्क न लें।
- अधिवक्ता को किसी कार्यवाई योग्य दावे में कोई शेयर या ब्याज प्राप्त करने के लिए सहमत नहीं होना चाहिए।
- कानूनी कार्यवाही से उत्पन्न संपत्ति की बोली या खरीद नहीं करनी चाहिए।
- अधिवक्ता को अपने मुवक्किल द्वारा देय शुल्क को मुवक्किल के प्रति अपने व्यक्तिगत दायित्व के विरुद्ध समायोजित नहीं करना चाहिए जो की अधिवक्ता के रूप में उसके पेशे के दौरान उत्पन्न नहीं होता है।
- अधिवक्ता को अपने मुवक्किल द्वारा उस पर जताए गए विश्वास का दुरूपयोग या फायदा नहीं उठाना चाहिए।
- उचित हिसाब -किताब रखें।
- अधिवक्ता को अपने खातों में यह उल्लेख करना चाहिए कि क्या उसके द्वारा मुवक्किल से प्राप्त कोई पैसा किसी कार्यवाही या राय के दौरान फीस या खर्च का कारण है।
- मुवक्किल को रकम के बारें में सूचित करें।
- कार्यवाही समाप्त होने के बाद फीस समयोजिय करें।
- खातों की प्रति उपलब्ध करायें।
- अधिवक्ता ऐसी व्यवस्था में प्रवेश नहीं करेगा जिससे उसके हाथ में मौजूद धनराशि. ऋण में परिवर्तित हो जाए।
- मुवक्किल को पैसा उधार न दें।
- विपक्षी की ओर से उपस्थित नहीं होना चाहिए।
3. विपक्षी के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्यों पर नियम।
- विज्ञापन न करें या काम न मांगें।
- अधिवक्ता का साइन -बोर्ड या नाम प्लेट उचित आकार का होना चाहिए।
- कानून के अनधिकृत अभ्यास को बढ़ावा न दें।
- अधिवक्ता उस फीस स इ कम शुल्क स्वीकार नहीं करेगा जिस पर नियमों के तहत तब कर लगाया जा सकता है जब मुवक्किल अधिक भुगतान करने में सक्षम हो।
- साथी अधिवक्ता की उपस्थित होने की सहमति।
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