www.lawyerguruji.com
नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि क्या है ग्राम न्यायालय ? राज्य का हित इसी में है कि मुक़दमे बाजी कम हो और सभी को समान न्याय प्राप्त हो। ग्रामीण स्तर पर होने वाले वाद विवाद वो चाहे सिविल प्रकृति के हो या फौजदारी के हो उनको उनके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत उनका निस्तारण किया जाये। जिसके के लिए प्रत्येक जिले की तहसील में एक ग्राम न्यायालय स्थापित होगी और अधिकारी क्षेत्राधिकार अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन नैसर्गिंक न्याय के सिद्धांत के अनुरूप करे।
ग्राम न्यायालय को विस्तार से जाने :-
1. ग्राम न्यायालय क्या है ?
2. ग्राम न्यायालय की स्थापना कैसे होगी ?
3. ग्राम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति ?
4. ग्राम न्यायालय की अधिकारिता क्या होगा ?
इन सभी सवालों के जवाब विस्तार से जाने ;-
1. ग्राम न्यायालय क्या है ?
ग्राम न्यायालय जैसा कि इसके नाम से प्रतीत हो रहा है कि ग्रामीण स्तर पर ऐसा न्यायालय जो ग्रमीणीय नागरिकों सिविल या फ़ौजदारी सम्बंधित विवादों के उत्पन्न होने पर न्याय प्राप्त करने का सामान अवसर उपलब्ध हो सके। ग्रामीण नागरिक को न्याय से वंचित न होना पड़े। संविधान का अनुच्छेद 14 का मुख्य उद्देश्य विधि के समक्ष समता को पूर्ण करना है। कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी अन्य कारणों से न्याय प्राप्त करने से वंचित न रहे न रहे।
ग्रामीण क्षेत्रों नागरिकों को न्याय से वंचित न होना पड़े इस बात को ध्यान में रखते हुए राज्यों ने यह सुनिश्चित किया की जिले की प्रत्येक तहसील में एक ग्राम न्यायालय की स्थापना की जाएगी।
2. ग्राम न्यायालय की स्थापना कैसे होगी ?
1. ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 की धारा 3 उपधारा 1 में न्यायालय स्थापना के सम्बन्ध में प्रावधान दिया गया है। राज्य सरकार अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए , इस अधिनियम द्वारा ग्राम न्यायालय को प्रदान की गयी अधिकारिता और शक्तियों का प्रयोग करने के प्रयोजन के लिए उच्च न्यायालय से परामर्श करने के अधिसूचना द्वारा जिले में मध्यवर्ती स्तर पर प्रत्येक पंचायत या मध्यवर्ती स्तर पर निकटम पंचायतों के समूह के लिए या जहाँ किसी राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर कोई पंचायत नहीं है वहां निकटवर्ती ग्राम पंचायत के समूह के लिए एक या अधिक ग्राम न्यायालय स्थापित करेगी।
2. ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 की धारा 3 उपधारा 2 के तहत राज्य सरकार , उच्च न्यायालय से परामर्श करने के बाद अधिसूचना द्वारा ऐसे क्षेत्र की स्थानीय सीमाएं विनिर्दिष्ट करेगी ग्राम न्यायालय अधिकारिता विस्तारित की जाएगी और किसी भी समय , ऐसी सीमाओं को बढ़ा सकेगी , कम कर सकेगी या परिवर्तित कर सकेगी।
3. ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 धारा ३ उपधारा 3 के तहत उपधारा 1 के अधीन स्थापित ग्राम न्यायलय उस समय लागु अन्य विधि अधीन स्थापित न्यायालयों के अतिरिक्त होगी।
3. ग्राम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए योग्यता ?
1. ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 की धारा 5 के तहत राज्य सरकार उच्च न्यायालय के परामर्श से प्रत्येक ग्राम न्यायालय के लिए एक न्यायाधिकारी की नियुक्ति करेगी।
2. ग्राम न्यायालय में न्यायाधिकारी की नियुक्ति की योग्यता के सम्बन्ध में धारा 6 में प्रावधान दिया गया है। कोई व्यक्ति ग्राम न्यायालय के न्यायाधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाने के लिए तभी योग्य होगा जब वह प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किये जाने के लिए पात्र हो।
3. ग्राम न्यायालय के न्यायाधिकारी नियुक्त करते समय अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जनजातियों , स्त्रियों तथा ऐसे अन्य वर्ग या समुदायें के सदस्यों को प्रतिनिधित्व दिया जायेगा जो राज्य सरकार द्वारा समय समय पर अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाएँ।
4. ग्राम न्यायालय की अधिकारिता क्या होगी ?
ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 की धारा 11 ग्राम न्यायालय की अधिकारिता का उल्लेख करता है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 या सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 या उस समय लागु किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी ग्राम न्यायालय सिविल दाण्डिक दोनों अधिकारिता का प्रयोग इस अधिनियम के अधीन उपबंधित रीति में और सीमा तक करेगा।
ग्राम न्यायालय को सिविल और दाण्डिक दोनों अधिकारिता इस अधिनियम द्वारा प्रदान की गयी है।
दाण्डिक अधिकारिता।
ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 की धारा 12 दाण्डिक अधिकारिता का प्रावधान करती है। जिसके तहत दंड प्रक्रिया संहिता 1973 या उस समय लागु किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी ग्राम न्यायालय किसी परिवाद पर या पुलिस रिपोर्ट पर किसी अपराध संज्ञान ले सकेगा और :-
- पहली अनुसूची के भाग 1 में विनिर्दिष्ट सभी अपराधों का विचारण करेगा , और
- उस अनुसूची के भाग 2 में सम्मिलित अधिनियमितियों के अधीन विनिर्दिष्ट अभी अपराधों का विचारण करेगा और अनुतोष यदि कोई हो प्रदान करेगा।
- पहली अनुसूची के भाग 1 में विनिर्दिष्ट अपराधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ग्राम न्यायालय उन राज्यों अधिनियमों के अधीन ऐसे सभी अपराधों विचारण करेगा या ऐसा अनुतोष प्रदान करेगा जो धारा 14 की उपधारा 3 के अधीन राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किये जाये।
पहली अनुसूची
भाग 1
भारतीय दंड संहिता 1860 के अधीन अपराध , आदि
- ऐसे अपराध जो मृत्युदंड , आजीवन कारावास या दो वर्षों से अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय नहीं है।
- भारतीय दंड संहिता धारा 379 , धारा 380 या 381 के अधीन चोरी , जहाँ चुराई गयी सम्पति का मूल्य बीस हजार रुपए अधिक नहीं है।
- भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 411 चुराई गयी संपत्ति को प्राप्त करना या प्रतिधारित करना जहां ऐसी संपत्ति का मूल्य बीस हजार रुपए अधिक नहीं है।
- भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 414 के अधीन चुराई गयी संपत्ति को छुपाने या उसके व्ययन में सहायता करना जहां ऐसी संपत्ति का मूल्य बेस रुपए से अधिक नहीं है।
- भारतीय दंड संहिता 1860 धारा 454 और धारा 456 के अधीन अपराध।
- भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 504 के अधीन शांति भंग करने को प्रकोपित करने के प्रयास से अपमान और धारा 506 के अधीन ऐसी अवधि के जो दो वर्ष तक की हो सकेगी , कारावास से या जुर्माने से या दोनों दंडनीय आपराधिक अभित्रास।
- पूर्वोक्त अपराधों में से किसी का दुष्प्रेरण।
- पूर्वोक्त अपराधों में से कोई अपराध करने का प्रयत्न ,जब ऐसा प्रयत्न अपराध हो।
भाग 2
अन्य केंद्रीय अधिनियमों के तहत अपराध औरअनुतोष ।
- ऐसे किसी कार्य द्वारा गठित कोई भी अपराध जिसके सम्बन्ध में पशु अतिचार अधिनियम 1871 की धारा 20 के तहत शिकायत की जा सकती है।
- वेतन भुगतान अधिनियम 1936
- न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948
- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955
- आपराधिक संहिता 1973 के अध्याय IX के तहत पत्नियों, बच्चों और माता -पिता के भरण पोषण का आदेश।
- बंधुवा मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन ) अधिनियम 1976
- समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976
- घरेलु हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005
भाग 3
राज्य अधिनियमों के अधीन अपराध अनुतोष।
राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित वाले।
सीवल अधिकारिता।
ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 धारा 13 सिविल अधिकारिता का प्रावधान करती है। जिसके टी तहत सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 या उस समय लागु किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी और उपधारा 2 के अधीन रहते हुए ग्राम न्यायालय की नम्नलिखित अधिकारिता होगी :-
- दूसरी अनुसूची के भाग 1 में विनिर्दिष्ट वर्गों के विवादों के अधीन आने वाले सिविल प्रकृति के सभी वादों कार्यवाही का विचारण करना।
- उन सभी वर्गों के दावों और विवादों का विचारण करना जो धारा 14 की उपधारा 1 के अधीन केंद्रीय सरकार द्वारा और उक्त धारा की उपधारा ३ अधीन राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाये।
- न्यायालय की धनीय सीमाएं वे होंगी जो उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार के परामर्श से समय समय पर अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं।
दूसरी अनुसूची
भाग 1
ग्राम न्यायालयों की अधिकारिता के भीतर सिविल प्रकृति के वाद।
- सिविल विवाद।
- संपत्ति क्रय करने का अधिकार।
- सामान्य चरागाहों का उपयोग।
- सिंचाई सारणियों से जल लेने का विनियमन और समय।
- संपत्ति विवाद।
- गम और हाउस कब्जा।
- जलसरणियों।
- कुएं या लेने का अधिकार।
- अन्य विवाद।
- मजदूरी संदाय अधिनियम 1936 . न्यूनतम अधिनियम 1948 .
- व्यापर संव्यवहार या साहूकारी से उद्भूत धन सम्बन्धी वाद।
- भूमि पर खेती में भागीदारी से उद्भूत विवाद।
- ग्राम पंचायतों के निवासियों द्वारा वन उपज के उपयोग के सम्बन्ध में विवाद।
भाग 2
केंद्रीय सरकार द्वारा धारा 14 की उपधारा 1 के अधीन अधिसूचित केंद्रीय अधिनियमों के अधीन दावे और विवाद
केंद्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किये जाने वाले।
भाग 3
राज्य सकरार द्वारा धारा 14 की उपधारा 3 के अधीन राज्य अधिनियमों के अधीन दावे और विवाद
राज्य सरकाए द्वारा अधिसूचित किये जाने वाले।
No comments:
lawyer guruji ब्लॉग में आने के लिए और यहाँ पर दिए गए लेख को पढ़ने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद, यदि आपके मन किसी भी प्रकार उचित सवाल है जिसका आप जवाब जानना चाह रहे है, तो यह आप कमेंट बॉक्स में लिख कर पूछ सकते है।
नोट:- लिंक, यूआरएल और आदि साझा करने के लिए ही टिप्पणी न करें।