नमस्कार मित्रों ,
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि " परिवार न्यायालय क्या है ?" आमतौर पर परिवार न्यायालय का नाम सुनकर मन में एक यही छवि बनती है कि परिवार से सम्बंधित मामलों के निपटारे हेतु आवश्यक कार्यवाही करने वाला न्यायालय।
इस परिवार न्यायालय को विस्तार जाने।
- क्या है परिवार न्यायालय ?
- कुटुंब न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति कैसे होती है ?
- कुटुंब न्यायालय न्यायाधीश कौन बन सकता है ?
- कुटुंब न्यायालय के न्यायाधीश का कार्यकाल कब तक होता है ?
- कुटुंब न्यायालय के न्यायाधीश का वेतन और अन्य सुविधाएँ ?
- कुटुंब न्यायालय किन प्रकार के विवादों का निपटारा करने का अधिकार रखती है ?
- परिवार न्यायालय की विशेषताएं क्या है ?
1 कुटुंब न्यायालय क्या है ? कुटुंब न्यायालय की स्थापना ?
परिवार न्यायालय जिसे कुटुंब न्यायालय के नाम से भी जाना जाता है। वैवाहिक पारिवारिक बातों से सम्बंधित विवादों में सुलह कराने और उनका शीघ्र निपटारा सुनिश्चित करने की दृष्टि से कुटुंब न्यायालय स्थापित करने और उससे सम्बंधित विवादों का उपबंध करने के लिए कुटुंब न्यायालय अधिनियम पारित किया गया।
परिवार न्यायालय - कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984 की धारा 3 कुटुंब न्यायालय की स्थापना का प्रावधान करती है। कुटुंब न्यायालय को इस अधिनियम द्वारा प्रदान की गयी अधिकारिता और शक्तियों के प्रयोग करने के लिए राज्य सरकार उच्च न्ययालय से परामर्श करने के बाद और अधिसूचना द्वारा कुटुंब न्यायालय की स्थापना की जाएगी।
ये कुटुंब न्यायालय अधिनियम के पारित होने के बाद तुरंत राज्य में किसी नगर या कस्बे के क्षेत्र के लिए जिसकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक है , कुटुंब न्यायालय स्थापित करेगी।
राज्य के ऐसे अन्य क्षेत्रों के जिन्हे राज्य आवश्यक समझे कुटुंब न्यायालय स्थापित कर सकेगी।
राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श बाद अधिसूचना के द्वारा उस क्षेत्र की स्थानीय परिसीमाएं विनिर्दिष्ट करेगी जिस तक किसी कुटुंब न्यायालय की अधिकारिता का विस्तार होगा और ऐसी परिसीमाओं को किसी समय बढ़ा या घटा या परिवर्तित कर सकेगी।
2.कुटुंब न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कैसे होती है ?
कुटम्ब न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति सम्बन्ध प्रावधान अधिनियम की धारा 4 में दिए गए है। राज्य सरकार , उच्च न्यायालय की सहमति से एक या अधिक व्यक्तियों को कुटुंब न्यायालय न्यायाधीश या न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त कर सकेगी।
जब कोई कुटुंब न्यायालय एक या अधिक न्यायाधीशों से मिलकर बनता है तब :-
- ऐसे कुटुंब न्यायालय का हर एक न्यायाधीश कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1956 या उस समय लागु किसी अन्य अन्य विधि द्वारा न्यायालय को प्राप्त सभी या किन्ही शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा।
- राज्य सरकार , उच्च न्यायालय की सहमति से किसी भी न्यायाधीश को प्रधान न्यायाधीश और किसी अन्य न्यायाधीश को अपर प्रधान न्यायाधीश नियुत्क कर सकेगी।
- प्रधान न्यायाधीश , न्यायालय के विभिन्न न्ययायधीशों के मध्य न्यायालय के कारबार के वितरण के लिए ंसय -समय पर ऐसे इंतज़ाम कर सकेगा जो वह ठीक समझे।
- अपर न्यायाधीश , प्रधान न्यायाधीश का पद रिक्त होने की दशा में या जब प्रधान न्यायाधीश की अनुपस्थिति, बीमारी या किसी अन्य कारण से अपने कार्यो का निर्वहन करने में असमर्थ है तब प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा।
3. कुटुंब न्यायायल का न्यायाधीश कौन बन सकता है ?
कुटुंब न्यायालय के न्यायाधीश बनने की योग्यता के सम्बन्ध में कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1956 की धारा 4 उपधारा 3 में उल्लेख किया गया है। कोई भी व्यक्ति, न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तभी योग्य होगा जब :-
- वह व्यक्ति भारत में कोई न्यायिक पद या किसी अधिकरण के सस्दय का पद अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई पद कम से कम 7 वर्ष तक धारण कर चूका हो जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है , या
- किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालय का लगातार कम से कम 7 वर्ष तक अधिक्वता रहा हो ,या
- इसके पास ऐसी अन्य योग्यता हो , जो केंद्रीय सरकार , भारत के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से विहित करे।
कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1956 की धारा 4 उपधारा 4 के अंतर्गत कुटुम न्यायालय के न्यायधीश का चयन करते समय यह सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास किया जाएगा कि उन व्यक्तियों का ही चयन किया जाए जो :-
- विवाह संस्था की संरक्षा करने और उसे बनाये रखने तथा बालकों के कलयाण की अभिवृद्धि के लिए प्रतिबद्ध है
- सुलह और परामर्श द्वारा विवादों का निपटारा कराने के अपने अनुभव और विशेषज्ञता के कारण योगत है ,
- नियुक्ति में महिलाओं की अधिमानता दी जाएगी।
4. कुटुंब न्यायालय के न्यायाधीश का कार्यकाल कब तक होगा ?
कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1956 की धारा 4 उपधारा 5 के तहत कोई व्यक्ति 62 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने के बाद , कुटुंब न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त नहीं किया जायेगा और न्यायाधीश का पद धारण नहीं करेगा।
5.कुटुंब न्यायालय , न्यायाधीश का वेतन और अन्य सुविधाएँ ?
कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1956 की धारा 4 उपधारा 6 के अनुसार किसी न्यायाधीश को मिलने वाला वेतन या मानदेय और अन्य भत्ते तथा उसकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते ऐसी होंगी जो राज्य सरकार उच्च न्यायालय के परामर्श करके विहित करे।
6. परिवार न्यायालय किन प्रकार के विवदों का निपटारा करने का अधिकार रखती है ?
कुटुंब न्यायालय / परिवार न्यायालय , विवाह और पारिवारिक बातों से सम्बंधित विवादों में सुलह कराने और उनका शीघ्र निपटारा सुनिश्चित करने के लिए कुटुंब न्यायालय स्थापित किया।
कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1956 की धारा 7 के तहत कुटुंब न्यायालय निम्मलिखित विवादों का निपटारा करने का अधिकार रखती है :-
- किसी विवाह के पक्षकारों के बीच विवाह को , यथास्थिति ,अकृत और शून्य घोषित करने के लिए या विवाह को बलित करने के लिए विवाह की अकृतता या दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन या न्यायिक पृथक्करण या विवाह के विघटन की डिक्री के लिए कोई वाद या कार्यवाही।
- किसी विवाह के पक्षकारों के बिच ऐसे पक्षकारों की या उनमे से किसी की सम्मत्ति की बाबत कोई विवाद या कार्यवाही।
- किसी वैवाहिक सम्बन्ध से उत्पन्न परिस्थितियों में किसी आदेश या विदेश के लिए कोई वाद या कार्यवाही।
- किसी व्यक्ति के धर्मजत्व के बारें में किसी घोषणा के लिए कोई वाद या कार्यवाही।
- भरणपोषण के लिए कोई वाद या कार्यवाही।
- किसी व्यक्ति की संरक्षकता अथवा किसी अवयस्क की अभिरक्षा या उस तक पहुंच के सम्बन्ध में कोई वाद या कार्यवाही।
- दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अध्याय 9 के अधीन जो पत्नी , संतान और माता पिता के भरणपोषण के लिए आदेश के सम्बन्ध में है किसी प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट द्वारा प्रयोग किये जाने वाली अधिकारिता।
- ऐसी अन्य अधिकारिता , जो किसी अन्य अधिनियमिति द्वारा उसको प्रदत्त की जाये और वह उसका प्रयोग करेगा।
7. कुटुंब न्यायालय की विशेषताएँ क्या है ?
कुटुंब न्यायालय जो की विवाह और पारिवारिक बातों से सम्बन्धी विवादों में सुलह कराने और उनका शीघ्र निपटारा सुनिश्चित करने का कार्य करती है , कुटुंब न्यायालय / परिवार न्यायालय की मुख्य विशेषताएँ कुछ इस प्रकार से है :-
- विवाह और पारिवारिक सम्बंधित विवादों का शीघ्र निपटारा।
- महिला न्यायधीशों की अधिमानता।
- भरणपोषण पोषण सम्बंधित विवादों का निपटारा।
- किसी व्यक्ति की संरक्षकता या किसी अवयस्क की अभिरक्षा सम्बंधित कार्यवाही।
- वैवाहिक या पारिवारिक विवादों में समझौता करवाने का प्रयास करना।
- वैवाहिक या पारिवारिक संबधित विवादों के निपटारे की कार्यवाही बंद कमरे में होगी।
- वैवाहिक या पारिवारिक विवादों से सम्बंधित कार्यवाहियों के दौरान चिकत्सा एवं कल्याण विशेषज्ञ की सहायता लेना।
- कुटुंब न्यायालय के प्रत्येक निर्णय या आदेश के जो अंतर्वर्ती आदेश न हो , अपील उच्च न्यायालय में तथ्यों और विधि दोनों के सम्बन्ध में होगी।
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