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क्या कोई हिन्दू विधवा महिला पुनः शादी कर सकती है ? Hindu widow remarriage law

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नमस्कार मित्रों, 

आज के इस लेख हम जानेंगे कि " क्या हिन्दू विधवा स्त्री पुनर्विवाह कर सकती है ? यानी क्या कोई हिन्दू विधवा महिला पुनः शादी कर सकती है ? 

क्या कोई हिन्दू विधवा महिला पुनः शादी कर सकती है ? Hindu widow remarriage law

हिन्दू विधवा स्त्री के पुनर्विवाह को लेकर अपने मन में कई सवाल होंगे जैसे कि :
  1. हिन्दू विधवा पुनर्विवाह के लिए किसने कदम उठाया ?
  2. हिन्दू विधवा पुनर्विवाह से सम्बंधित कानून ?
  3. हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित होने से पहले विधवा की क्या स्थिति थी ?
इन सभी सवालों के जवाब हम विस्तार से जानेंगे। 

1. हिन्दू विधवा स्त्री के पुनर्विवाह के लिए कदम किसने उठाया ? 

भारत में सं 1856 से पहले जब कोई हिन्दू स्त्री विधवा होती है यानी जब उसके पति की मृत्यु हो जाती थी , तो उसे पुनर्विवाह का अधिकार नहीं था , उसे अपना सम्पूर्ण जीवन बिना पुनः विवाह किये गुजारना होता था। लेकिन ऐसी प्रथा को लेकर कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज के आचार्य श्री ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विरोध किया और हिन्दू विधवा पुनर्विवाह को मान्यता दिलाने के लिए अपना पूर्ण प्रयास किया जिसमे उन्होंने भारतीय संस्कृत लेखों वव् वैदिक उल्लेखों का तर्क देते हुए यह प्रमाणित किया कि वेदों में भी विधवा विवाह को मान्यता दी गयी है।  ईश्वरचंद्र विद्यासागर के इन प्रयासों से हिन्दू विधवा स्त्री पुनर्विवाह के समर्थन में लगभग सहस्त्र हस्ताक्षरों वाला एक प्रमाण पत्र तत्कालीन गवर्नर जनरल डलहौजी को दिया गया। ईश्वरचंद्र विद्यासागर के साथ ही साथ बर्दवान के राजा मेहताब चंद और नाडिया के राजा श्री चंद ने भी विधवा पुनर्विवाह के लिए अपनी याचिकाएँ सरकार को भेजी।  

इन लोगो भरसक प्रयास ने और मेहनत रंग लाई जिसके परिणामस्वरूप 26 जुलाई 1856 को लार्ड कैनिंग द्वारा " विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 पारित किया गया। 

विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 ने हिन्दू विधवा स्त्री को पुनर्विवाह की मान्यता प्रदान की और साथ में ऐसे विवाह को वैध करार दिया और उससे पैदा हुए शिशु को भी वैध घोषित किया। 

ईश्वरचंद्र विद्यासागर के इन प्रयासों ने हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित करवा कर सती प्रथा का अंत करवाया।  विधवा महिलाओं को पुनः जीवन जीने का अधिकार दिलाया। 

2. हिन्दू विधवा पुनर्विवाह से सम्बंधित कानून ? 

 हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 . 
हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 की धारा 1 हिन्दू विधवाओं के विवाह को वैध बनाता है। हिन्दुओं के बीच किया गया कोई भी विवाह अमान्य नहीं होगा और ऐसी किसी भी शादी का मुद्दा अवैध नहीं होगा , क्योकि महिला की पहले से शादी हो चुकी है या उसकी मंगनी किसी अन्य व्यक्ति से हो चुकी है , जो ऐसे विवाह के समय मर चूका था कोई भी प्रथा और कोई व्याख्या इसके विपरीत हिन्दू कानून के बावजूद। 

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम की मुख्य विषेशताएँ। 
  1. हिन्दू विधवा विवाह अधिनियम की धारा 1 हिन्दू विधवाओं के पुनर्विवाह को वैध घोषित करती है। ऐसा विवाह अमान्य नहीं होगा , ऐसा विवाह करना नाजायज नहीं होगा, क्योकि किसी भी हिन्दू रीति रिवाज और कानून की व्याख्या ऐसी शादी पे विपरीत नहीं है। 
3. हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित होने से पहले विधवाओं की स्थिति ?

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित होने से पहले भारत में हिन्दू विधवा स्त्रियों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी और विधवाओं का जीवन बहुत चुनौती भरा था जैसे कि :-
  1. सती प्रथा जिसके अंतर्गत पति की मृत्यु पर उसके दाह संस्कार के साथ पत्नी भी अपना जीवन उसी चिता में समाप्त कर देती थीं या , पति की मृत्यु के बाद विधवा महिला को एक संत की तरह जीवन जीना होता था,'
  2. विधवाओं को श्रृंगार पर रोक थी व् नए वस्त्र पहने पर रोक थी, 
  3. अच्छे भोजन के लिए त्याग करने पर मजबूर किया जाता था, 
  4. उस्तव व् त्यौहार पर शामिल होने पर रोक थी ,  
  5. किसी शुभ कार्य में शामिल नहीं किया जाता था,
  6. यदि कोई बच्ची विधवा हो जाये तो पुनः विवाह करने की अनुमति नहीं थी ,चाहे विवाह पूर्ण रूप से संपन्न ही क्यों न हुआ हो। 

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