नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में हम जानेंगे "डॉक्ट्रिन ऑफ़ डबल जेओपर्डी यानी दुहरे खतरे का सिद्धांत / दुहरे दंड का सिद्धांत क्या होता है ?
दुहरे दंड का सिद्धांत / दुहरे खतरे का सिद्धांत / डॉक्ट्रिन ऑफ़ डबल जेओपर्डी इस सिद्धांत का तात्पर्य यह कि किसी भी व्यक्ति एक ही अपराध जे लिए एक बार से अधिक न अभियोजित किया जायेगा और न ही दण्डित किया जायेगा।
इसको और विस्तार से समझे।
दुहरे दंड का सिद्धांत / दुहरे खतरे का सिद्धांत क्या है ? doctrine of double jeopardy
दुहरे दंड का सिद्धांत इंग्लिश कॉमन लॉ के nemo debet proeadem causa bis vexari के नियम पर आधारित है , जिसका अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार तंग नहीं किया जायेगा।
दुहरे दंड का सिद्धांत इस नियम के बारे में भारतीय संविधान 1950 के अनुच्छेद 20 (2), भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 300 ( 1 ) व् सामान्य खंड अधिनियम 1897 की धारा 26 में उपबंधित किया गया है।
भारतीय संविधान 1950 अनुच्छेद 20 ( 2 ) :- किसी भी व्यक्ति को उसी अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित व् दण्डित नहीं किया जायेगा।
सामान्य खंड अधिनियम 1897 की धारा 26 :- जहाँ कोई कार्य या लोप एक या अधिक अधिनियमों के अंतर्गत कोई अपराध गठित करता है, वहां अभियुक्त उसके या उसमे से किसी एक अधिनियम के अंतर्गत अभियोजित और दण्डित होगा , किन्तु उसी अपराध के लिए वह दुबारा दण्डनीय नहीं होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 300 (1 ) :- जो कोई भी किसी न्यायालय के समक्ष किसी अपराध जे लिए विचारित होने के पश्चात दण्डित हुआ था या उसे दोषमुक्ति प्रदान की गयी थी , वह जब तक ऐसी दोषसिद्धि या दोषमुक्ति के प्रवृत्त रहती है तब तक न तो उसी अपराध के लिए पुनः विचारण का भागी होगा न ही उन्ही तथ्यों पर किसी ऐसे अन्य अपराध के लिए विचारण का भागी होगा जिसके लिए उसके विरुद्ध लगाए गए आरोप से भिन्न आरोप धारा 221 (1 ) के अधीन लगाया जा सकता था या , उपधारा 2 के अधीन दण्डित किया जा सकता था।
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