नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में जानेंगे कि " कब किसी व्यक्ति पर दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 151 के तहत कार्यवाही होती है ?
अक्सर हम सुनते है कि दो गुटों में किसी बात को लेकर विवाद इतना भयानक हो जाता है , किसी गंभीर प्रकृति के अपराध के घटने की आशंका होती है, तो किसी न किसी प्रकार से ऐसी घटना की सूचना उस क्षेत्र के पुलिस अधिकारी को मिलती है, और पुलिस अधिकारी के आने पर उनके समाधान होने पर धारा 151 के तहत कार्यवाही की जाती है, ताकि होने वाले अपराध को घटने से रोका जा सके।
किसी अपराध के घटने को रोके जाने का मुख्य उद्देश्य कानून व्यवस्था को बनाये रखना और अपराध पर रोकथाम व् नियंत्र लगाना होता है।
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 151 क्या कहती है ?
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 151 संज्ञेय अपराधों का किया जाने से रोकने के लिए गिरफ़्तारी का प्रावधान करती हैं।
1. धारा 151 उपधारा 1 के तहत कोई पुलिस अधिकारी जिसे किसी संज्ञेय अपराध (यानी ऐसा अपराध जो की गंभीर प्रकृति है,)को करने की परिकल्पना का पता चलता है, तो ऐसे परिकल्पना करने वाले व्यक्ति को पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारंट के बिना उस दशा में गिरफ्तार कर सकता है जिसमे ऐसे अधिकारी को प्रतीत होता है कि उस अपराध का किया जाना अन्यथा रोका नहीं जा सकता।
यानी ऐसे संज्ञेय अपराध को किये जाने से रोके जाने के लिए उस अपराध को कारित करने वाले व्यक्ति की गिरफ़्तारी अत्यंत आवश्यक है।
2. धारा 151 उपधारा 2 के तहत उपधारा 1 के अधीन संज्ञेय अपराध को रोके जाने के लिए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, ऐसे गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को उसकी गिरफ़्तारी के चौबीस घंटे की अवधि से अधिक के लिए अभिरक्षा यानी कस्टड़ी में उस दशा के सिवाय निरुद्ध यानी हिरासत में नहीं रखा जायेगा जिसमे उसका और आगे निरुद्ध रखा जाना इस संहिता के या उस समय लागु किसी अन्य विधि के किन्ही अन्य प्रावधानों के अधीन अपेक्षित या प्राधिकृत है।
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