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नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में आप सभी को बताने जा रहे है कि मुक़दमे में तारीख पर तारीख क्यों होती है ? यानी क्यों मुक़दमे का फैसला होने में सालों लग जाते है ?
यह सवाल आप सभी के मन में होगा, क्योकि यह सवाल आप लोगो ने कई बार हिंदी फिल्मों में या किसी व्यक्ति के मुख से सुना होगा, कि मुक़दमे में तारीख पर तारीख लग रही फैसला नहीं हो रहा है।
तो चलिए जाने तारीख पर तारीख लगने के पीछे का मुख्य कारण क्या है ?
इसको जानने से पहले हमे ये जानना होगा कि किसी भी मुक़दमे की शुरुआत कैसे होती है ?
हम बात करेंगे सिविल मुकदमों की शुरुआत कब कैसे होती है ?
अधिकतर सिवल मुकदमो की शुरुआत अचल संपत्ति के कब्जे या बटवारें को लेकर होती है। मुकदमा दायर हमेसा उस पक्ष की तरफ से दायर होता है जो कि पीड़ित होता है। प्रत्येक मुक़दमे में दो पक्षकार होते है।
- वादी - जो वाद दायर करता है।
- प्रतिवादी - जिसके विरुद्ध वाद दायर किया जाता है।
वाद दायर करने के लिए वाद पत्र और अन्य वाद से सम्बंधित दस्तावेजों को जिस न्यायालय में वाद दायर करना होता है, उस न्यायालय के कार्यालय में दाखिल करना होता है, और निर्धारित समय पर कार्यालय के बाबू द्वारा फाइल न्यायालय कक्ष में लाइ जाती है।
पुकार होने पर वादी के अधिवक्ता न्यायाधीश के समक्ष अपनी बात रखते है। वादी के अधिवक्ता अपनी कर लेने के बाद न्यायाधीश आदेश सुनाता है, जिसमे वह प्रतिवादी को नोटिस भेजे जाने का आदेश करता है।
इसके बाद से मुक़दमे में तारीख लगने की शुरुआत होती है।
एक तारीख ;- नोटिस जारी करने के लिए लगती है।
वाद से सम्बंधित प्रतिवादी / प्रतिवादीगण को न्यायालय द्वारा सम्मन भेजा जाता है। सम्मन में वाद से सम्बंधित जानकारी व् वाद पत्र की एक प्रतिलिप संलग्न होती है। सम्मन में एक निर्धारित तिथि लिखी होती है, जिसके तहत प्रतिवादी को न्यायालय में अपनी प्रतिरक्षा के लिए लिखित जवाब दावा दायर करना होता है।
सम्मन जारी होने के 30 दिनों के भीतर प्रतिवादी को न्यायालय के समक्ष हाजिर होना होता है।
एक तारीख - प्रतिवादी के अधिवक्ता द्वारा ली जाती है।
वाद दायर होने के बाद न्यायालय द्वारा प्रतिवादी को हाजिर होने के लिए अपने पक्ष में प्रतिरक्षा के लिए सम्मन जारी किया जाता है, कि वह लिखित जवाब दायर करे। इसके लिए प्रतिवादी वकील नियुक्त करता है जो प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व कर उसकी बात को न्यायालय के समक्ष रखता है।
लिखित जवाब दावा तैयार करने में समय लगता है यानी वाद से सम्बंधित सभी तथ्यों को देखने के बाद जवाब दावा तैयार किया जाता है।
पहली तारीख में अधिवक्ता समय मांगता है। सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 17 नियम 1 के तहत मौका मांगने का एक प्रार्थना पत्र लिखित में दिया जाता है।
एक तारीख - कमीशन रिपोर्ट के लिए।
वाद से सम्बंधित विवादित विषय की कमीशन रिपोर्ट लगती है। कमीशन करवाने के लिए वादी / प्रतिवादी न्यायालय के समक्ष सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश 39 नियम 7 के अधीन कमीशन के लिए न्यायालय के समक्ष आवेदन पत्र देना होता है।
कमीशन रिपोर्ट आने में समय लग जाता है , क्योकि कमिशनकर्ता के पास पहले से ही कई कमीशन होती है तो उनके होने पर या समय मिलने पर या वरीयता के अनुसार कमीशन होती है।
वादी / प्रतिवादी द्वारा कई तारीख ली जाती है।
- बीमारी के कारण,
- परिवार में गमी हो जाने के कारण,
- अन्य उचित कारणों के कारण।
अधिवक्ता द्वारा कई तारीख ली जाती है।
- बीमारी के कारण,
- परिवार में गमी के कारण,
- अन्य उचित कारणों के कारण।
एक तारीख - वाद से सम्बंधित दस्तावेजों के दाखिल करने के लिए।
वादी / प्रतिवादी दोनों को यदि ऐसा लगता है कि वाद से सम्बंधित कोई ऐसा दस्तावेज दाखिल करना है जो कि वाद को उनके पक्ष में मजबूत बनाये , तो ऐसे दस्तावेजों के दाखिल करने के लिए एक तारीख मांगी जाती है। इसके लिए भी एक प्रार्थना पत्र देना होता है।
एक तारीख - गवाहों को गवाही के लिए बुलाने पर।
वाद से सम्बंधित गवाही के लिए वादी / प्रतिवादी द्वारा अपने -अपने पक्ष में बोले जाने वाले गवाहों को गवाही के लिए हाजिर कराना होता है। उसके लिए भी एक तारीख लगती है।
- जरुरी नहीं कि गवाह उस नियत तिथि में हाजिर हो जाये,
- जरुरी नहीं की सभी गवाहों की गवाही एक दिन में हो जाती है,
वाद की कार्यवाही के बीच में आवेदन दाखिल होने पर उसके निस्तारण के लिए एक तारीख।
एक तारीख - मुक़दमे की बहस के लिए।
वादी / प्रतिवादी के अधिवक्ता वाद के सम्बन्ध में अपनी -अपनी ओर से तर्क न्यायाधीश के समक्ष रखते है। न्यायधीश सुनता है और आदेश के लिए एक तारीख नियत करता है।
एक तारीख - आदेश की सुनवाई के लिए।
वादी / प्रतिवादी के अधिवक्ता दोनों अपने अपने तर्क न्यायधीश के समक्ष प्रस्तुत करते है, न्यायाधीश आदेश के लिए एक दिन नियत करता है। यह दिन दोनों अधिवक्ताओं को बताया जाता है।
तारीख पर तारीख लगने के कई कारण हो सकते है।
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