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नमस्कार मित्रो,
आज के इस लेख में आप सभी को "दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 भरण पोषण" के बारे में बताने जा रहा हु की "कब न्यायालय द्वारा पत्नी संतान और माता पिता के भरण पोषण के लिए आदेश" दिया जा सकता है "
भरण पोषण से मतलब यह है कि किसी भी व्यक्ति की उन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति जो उसके जीवन व्यापन के लिए अति आवश्यक होती है। एक सामान्य व्यक्ति के भरण पोषण के लिए इन निम्न का होना अतिआवश्यक होता :-
- रोटी,
- कपड़ा,
- मकान,
- शिक्षा,
- दवा और अन्य मूलभूत आवश्यकता।
ये तो रहा भरण पोषण का संक्षेप में अर्थ। अब दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 - भरण पोषण के बारे में विस्तार से जानेंगे।
कब न्यायालय द्वारा पत्नी, संतान और माता पिता के भरण पोषण का आदेश दिया जा सकता है ?
पत्नी, संतान और माता पिता के भरण पोषण के लिए न्यायालय द्वारा आदेश तभी दिया जा सकता है, जब भरण पोषण के सम्बन्ध में भरण पोषण पाने का अधिकार रखने वाली पत्नी, संतान और माता पिता द्वारा अपने स्थानीय क्षेत्राधिकार के न्यायालय के समक्ष भरण पोषण पाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत दावा / मुकदमा / वाद दायर किया जायेगा। वाद दायर होने के बाद न्यायालय द्वारा कार्यवाही शुरू होगी, सभी औपचारिकताओं के पूर्ण होने पर न्यायालय द्वारा आदेश दिया जायेगा।
क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 भरण पोषण के सम्बन्ध में ?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 -पत्नी, संतान और माता पिता के भरण पोषण के आदेश के समबन्ध में प्रावधान करती है। जिसमे यह बताया गया है कि कब पत्नी, संतान और माता पिता भरण पोषण पाने की अधिकार रखते है।
उपधारा 1 के तहत यदि पर्याप्त साधनो वाला व्यक्ति अपने परिवार के सदस्यों के भरण पोषण करने से इंकार करता है या मना करता है जैसे कि :-
- पति द्वारा पत्नी के भरण पोषण से इंकार करना जहाँ पत्नी अपना स्वयं का भरण पोषण करने में असमर्थ है.
- पिता द्वारा अपने जायज या नाजायज नाबालिग संतान का जो कि चाहे विवाहित हो या न हो भरण पोषण करने से इंकार करता है जहाँ वे स्वयं भरण पोषण में असमर्थ है,
- पिता द्वारा जायज और नजायज संतान का जो विवाहित पुत्री नहीं है, जो की बालिग हो गयी है भरण पोषण से इंकार करना जहाँ ऐसी संतान शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है,
- पुत्र द्वारा अपने माता-पिता के भरण पोषण से इंकार करना जो अपने भरण पोषण करने में असमर्थ है।
उपरोक्त बताये गए सभी पारिवारिक सदस्य पत्नी, संतान और माता पिता के भरण पोषण करने से कोई भी व्यक्ति जिसके पास पर्याप्त साधन है यानी आय व् संपत्ति है भरण पोषण करने से लापरवाही करता या इंकार कर देता है, तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के समक्ष भरण पोषण करने से इंकार करना साबित हो जाने पर भरण पोषण करने से इंकार करने वाले व्यक्ति को यह आदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, माता पिता के भरण पोषण के लिए मासिक दर पर ऐसा गुजारा भत्ता दे जो कि मजिस्ट्रेट ठीक समझे और उस भत्ते का भुगतान ऐसे व्यक्ति को करे जिसको देने के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा समय -समय आदेश दिया जाये।
पत्नी - पत्नी के अंतर्गत वे स्त्रियां भी आती हे जिनके पति ने उनसे तलाक़ ले लिया है या जिसने अपने पति से तलाक़ ले लिया है और फिर से दुबारा विवाह नहीं किया है।
कब नाबालिग और विवाहित पुत्री पिता से भरण पोषण पाने का अधिकार रखती है ?
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 धारा 125 की उपधारा 1 खंड ख के तहत मजिस्ट्रेट नाबलिग पुत्री के पिता को यह आदेश दे सकता कि वह उस समय तक अपनी नाबालिग पुत्री को भरण पोषण के लिए गुजारा भत्ता देता रहेगा जब तक वह बालिग नहीं हो जाती है।
यदि मजिस्ट्रेट को यह समाधान हो जाता है कि ऐसी नाबालिग पुत्री यदि विवाहित है और उसके पति के पास उसके भरण पोषण के लिए पर्याप्त साधन नहीं है तो मजिस्ट्रेट उस नाबालिग विवाहित पुत्री के भरण पोषण के लिए भत्ता देने का आदेश पिता को दे सकती है।
क्या भरण पोषण के वाद / मुक़दमे के दौरान कार्यवाही का खर्चा मिलता है ?
भरण पोषण के लिए मासिक भत्ते से सम्बंधित कार्यवाही के दौरान मजिस्ट्रेट यह आदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी, संतान या माता पिता के अंतरिम भरण पोषण और भरण पोषण के लिए दायर वाद की कार्यवाहियों के लिए खर्चा की ऐसी राशि दे जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे और ऐस राशि का भुगतान ऐसे व्यक्ति को करेगा जिसको देने के लिए मजिस्ट्रेट समय समय पर निर्देश देगा।
अंतरिम भरण पोषण और वाद की कार्यवाही के लिए खर्चे की राशि के आवेदन का निस्तारण कब होता है ?
अंतरिम भरण पोषण के मासिक भत्ते और वाद की कार्यवाहियों के लिए खर्चे के भुगतान के आवेदन का निस्तारण ऐसे व्यक्ति जिसको भरण पोषण और खर्चे की राशि देनी है उस पर सूचना की तामील यानी भरण पोषण की धन राशि देने वाले व्यक्ति की इसकी जानकारी हो जाने के 60 दिनों के भीतर जैसे सम्भव हो कर दिया जायेगा।
भरण पोषण और खर्चे के आवेदन के निस्तारण के कितने दिन बाद भत्ता मिलने लगता है ?
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 की उपधारा 2 के तहत भरण पोषण व् वाद कार्यवाही के खर्चों के मिलने के सम्बन्ध में बताया गया है कि कब से मिलेगा ;-
- भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के लिए भत्ते या वाद कार्यवाही के लिए खर्चे के आदेश की तिथि से भत्ता देना होगा।
- पत्नी , संतान या माता पिता द्वारा भरण पोषण और खर्चे के लिए किये गए आवेदन के निस्तारण हो जाने की तिथि से ऐसा भत्ता देना होगा।
न्यायालय द्वारा कब तत्काल भत्ता देने के लिए आदेश किया जा सकता है ?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की उपधारा 6 के तहत भरण पोषण की किसी कार्यवाही में मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत हो रहा हो कि भरण पोषण का दावा करने वाले व्यक्ति को इसके सहारे के लिए और कार्यवाही के आवश्यक खर्चे के लिए भत्ते की ततकाल जरुरत है तो ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट भरण पोषण का दावा करने वाले पक्षकार के आवेदन पर जिस पक्षकार के खिलाफ भरण पोषण का दावा किया गया है उसको आदेश दे सकेगा की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान ऐसा मासिक भत्ता और ऐसी कार्यवाही के खर्च में लगने वाली धराशि जो मजिस्ट्रट युक्तियुक्त समझे निर्धारित करे भरण पोषण का दावा करने वाले व्यक्ति को दे और ऐसा आदेश भरण पोषण के आदेश की तरह लागु होगा।
यदि न्यायालय के आदेश के बाद भी पति अपनी पत्नी, पिता अपनी संतान या पुत्र अपने माता पिता को भत्ता व् कार्यवाही का खर्च देने से इंकार कर दे तो क्या होगा ?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की उपधारा 3 के तहत जब किसी व्यक्ति को न्यायालय द्वारा यह आदेश दिया जाता है कि वह अपनी पत्नी, संतान और माता पिता को भरण पोषण के लिए और कार्यवाही के लिए खर्चा दे जैसा भत्ता प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा नियत किया गया है, यदि उसके द्वारा न्यायालय के उस आदेश का पालन नहीं किया जाता है या पर्यात्प कारण के बिना वह आदेश का पालन करने में असफल रहता है तो उस आदेश के हर एक अनुपालन के लिए मजिस्ट्रेट देने वाली राशि की वसूली के लिए लेवि वारंट जारी कर सकता है जैसा तरीका जुर्माने की राशि की वसूली करने के लिए अधिनियम में उपबंधित है।
जब भत्ते और खर्चे की राशि की वसूली के लिए लेवी वारंट जारी कर दिया जाता है और उस वारंट की जनकारी हो जाने के बाद भी भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के भत्ते या कार्यवाही के खर्चे जैसा भी स्थिति हो हर एक माह के इस भत्ते और खर्चे को नहीं चुका पाता है तो न चुकाए गए पुरे या उसके भाग के लिए भत्ता और खर्चा देने वाले व्यक्ति को 1 महीने तक की अवधि के लिए कारावास की सजा से दण्डित किया जायेगा। यदि पहले भत्ता चूका दिया जाता है तो चूका देने के समय तक के लिए कारावास से दण्डित किया जायेगा।
न्यायालय द्वारा वसूली के लिए लेवी वारंट कब जारी किया जायेगा ?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की उपधारा 3 के परन्तुक के तहत भरण पोषण के लिए दी जाने वाली राशि की वसूली के लिए न्यायालय वारंट तभी जारी करेगी जब उस राशि की वसूली के लिए न्यायालय के समक्ष उस भत्ते को देने के आदेश की तिथि से एक साल के भीतर आवेदन कर दिया जाये।
यदि पति इस शर्त पर पत्नी को भत्ता देने के लिए प्रस्ताव रखता है कि वह उसके साथ रहे तो क्या होगा ?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 उपधारा 3 के दुसरे परन्तुक के तहत यदि भरण पोषण करने वाला व्यक्ति इस शर्त पर भरण पोषण करने के लिए अपनी पत्नी के समक्ष यह प्रस्ताव रखता है कि पत्नी उसके साथ रहे और पत्नी द्वारा पति के साथ रहने से इंकार कर दिया जाता है तो मजिस्ट्रेट उसके द्वारा कहे गए इंकार के किन्ही आधारों पर विचार कर सकता है और पति द्वारा साथ रहने पर ही भरण पोषण करने के इस प्रस्ताव के किये जाने पर भी यदि मजिस्ट्रेट को यह समाधान हो जाता है कि भत्ता देने के लिए न्यायसंगत आधार है तो मजिस्ट्रेट भत्ता देने का आदेश दे सकता है।
न्यायसंगत आधार का उदाहरण :- यदि पति ने किसी अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखेल रखता है तो उसकी पत्नी का उसके साथ रहने को इंकार करना एक न्यायसंगत आधार माना जायेगा।
कब पत्नी अपने पति से भरण पोषण व् कार्यवाही के खर्च पाने के लिए हक़दार नहीं होगी ?
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की उपधारा 4 के तहत कोई भी पत्नी अपने पति से भरण पोषण के भत्ते व् कार्यवाही के लिए खर्चा पाने के लिए हक़दार नहीं होगी यदि वह जारता की दशा में रह रही है यानी अपने पति के अलावा किसी और पुरुष के साथ शारीरक सम्बन्ध बना रह रही है।
- यदि पत्नी वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है।
- यदि पति व् पत्नी अपनी आपसी सहमति से एक दूसरे से अलग रह रहे है।
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की उपधारा 5 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष यदि यह साबित हो जाता है कि कोई पत्नी जिसके पक्ष में धारा 125 के तहत भरण पोषण के लिए भत्ता देने का आदेश दिया गया है वह जारता की दशा में रह रही है या पर्याप्त कारण के बिना साथ रहने से इंकार कर रही है या आपसी सहमति से अलग रह रहे है तो ऐसे भरण पोषण के आदेश को मजिस्ट्रेट रद्द कर सकता है।
भरण पोषण की मांगे करने के लिए दावा/मुकदमा कहाँ दायर करे ?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 126 के तहत भरण पोषण की मांग करने के लिए दावा / मुकदमा दायर करने के सम्बन्ध में प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। जहाँ पत्नी को पति से, संतान को पिता से व माता -पिता को पुत्र से उनके भरण पोषण के लिए इंकार कर दिया जाता है तो ये सभी अपने भरण पोषण के भत्ते लिए प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के न्यायालय / पारिवारिक न्यायालय के समक्ष वाद दायर कर सकते है। वाद दायर करने के स्थान के सम्बन्ध में धारा 126 में प्रावधान किया गया है कि किसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 125 के तहत भरण पोषण के अंतर्गत कार्यवाही किसी ऐसे जिले में की जा सकती है जहाँ :-
- जहाँ वो रह रहा है जिसके खिलाफ भरण पोषण का वाद दायर करना।
- जहाँ वह व्यक्ति या उसकी पत्नी निवास करती है।
- जहाँ उस व्यक्ति ने अंतिम बार निवास किया हो।
- अपनी पत्नी के साथ या अधर्मज संतान की माता के साथ निवास किया है।
वाद दायर हो जाने के बाद साक्ष्य / गवाही किसकी उपस्थिति में ली जाएगी ?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 126 की उपधारा 2 के तहत भरण पोषण की कार्यवाही के समबन्ध में साक्ष्य उस व्यक्ति की उपस्थिति में लिया जायेगा जिसके विरुद्ध भरण पोषण के भत्ते का भुगतान किये जाने का आदेश देने का प्रस्ताव किया गया है। या जब उसको खुद उपस्थित होने से छूट दे दी गयी है तब उसके अधिवक्ता की उपस्थिति में साक्ष्य लिया जायेगा और उस तरीके से अभिलिखित किया जायेगा जो समन-मामलो में निर्धारित है।
जिस व्यक्ति के विरुद्ध भरण पपोषण का वाद दायर किया गया यदि वह न्यायालय की कार्यवाही ने उपस्थिति नहीं होता तो क्या होगा ?
यदि मजिस्ट्रेट को यह समाधान हो जाता है कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध भरण पोषण के भत्ते के भुगतान देने का आदेश किया गया है, वह न्यायालय द्वारा जारी तामील से जानबूझकर कर बच रहा है या न्यायालय में हाजिर होने से जानबूझकर कर बच रहा है यानी न्यायालय में भरण पोषण के सम्बन्ध में दायर वाद की कार्यवाही में उपस्थिति नहीं हो रहा है तो मजिस्ट्रेट ऐसे मामले में एकपक्षीय सुनवाई कर आदेश दे सकता है।
एकपक्षीय आदेश को यदि विरोधी पक्षकार अपास्त कराना चाहता है तो ऐसे एकपक्षीय आदेश की तिथि से 30 दिनों के भीतर एक आवेदन करना होगा और उसमे उन युक्तियुक्त कारणों को दर्शित करना होता है और यदि कोई खर्च के भुगतान के बारे में ऐसा कोई निबंधन है तो मजिस्ट्रेट न्यायोचित और उचित समझे तो ऐसे एकपक्षीय आदेश को अपास्त कर सकता है।
कब भरण पोषण के भत्ते में परिवर्तन हो सकता है ?
1. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 127 में धारा 125 की उपपधारा 1 के तहत भरण पोषण के लिए या अंतरिम भरण पोषण के लिए मासिक भत्ता पाने वाले पत्नी, संतान और माता पिता और भरण पोषण के लिए भत्ता देने वाले किसी व्यक्ति परिस्थ्तितियों में परिवर्तन हो हो जाता है और ऐसा परिवर्तन साबित हो जाने पर मजिस्ट्रेट जैसा उचित समझे अंतरिम भरण पोषण के लिए दिए जाने वाले भत्ते में जैसी स्थिति हो परिवर्तन कर सकता है।
2.जहाँ मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है की धारा 125 के तहत भरण पोषण के लिए दिए जाने वाले भत्ते के अधीन कोई आदेश किसी सक्षम सिविल न्यायालय के किसी निर्णय के परिणामस्वरूप रद्द या परिवर्तन किया जाना चाहिए वहां, वाद जैसी स्थिति में हो, उस आदेश को रद्द या परिवर्तित कर दिया जायेगा।
मजिस्ट्रेट कब किसी स्त्री के पक्ष में पारित भरण पोषण के भत्ते के आदेश को रद्द कर सकता है ?
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 127 की उपधारा 3 के तहत धारा 125 के अधीन भरण पोषण के लिए भत्ता देने का आदेश किसी ऐसी स्त्री के पक्ष में दिया जाता है जिसके पति ने उससे विवाह विच्छेद (डाइवोर्स) कर लिया या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है वहां मजिस्ट्रेट को समाधान हो जाने पर यानी ऐसी सूचना मिलने पर :-
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 128 के तहत भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण और वाद की कार्यवाहियों में लगने वाले खर्चे जैसी भी स्थिति हो इनके आदेश की प्रति उस व्यक्ति को जिसके पक्ष में भरण पोषण के भत्ते का आदेश दिया गया है या उसके संरक्षक को यदि कोई हो या उस व्यक्ति को जिसे भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के लिए भत्ता और कार्यवाहियों के खर्चे जैसी स्थिति हो दिया है भत्ते के आदेश की प्रति निःशुल्क दी जाएगी।
भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण और कार्यवाहियों के खर्चे के आदेश को लागु करने का स्थान वह होगा जहाँ वह व्यक्ति निवास करता है जिसके विरुद्ध भरण पोषण के भत्ते व् खर्चे का आदेश दिया गया था।
किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पक्षकारों की पहचान के बारे में, भत्ता या दिए जाने वाले खर्चे के बारे में जैसी भी स्थिति हो ऐसे भत्ते व् खर्चे के न दिए जाने के बारे में मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाने पर भत्ते के आदेश को लागु किया जा सकता है।
एकपक्षीय आदेश को यदि विरोधी पक्षकार अपास्त कराना चाहता है तो ऐसे एकपक्षीय आदेश की तिथि से 30 दिनों के भीतर एक आवेदन करना होगा और उसमे उन युक्तियुक्त कारणों को दर्शित करना होता है और यदि कोई खर्च के भुगतान के बारे में ऐसा कोई निबंधन है तो मजिस्ट्रेट न्यायोचित और उचित समझे तो ऐसे एकपक्षीय आदेश को अपास्त कर सकता है।
कब भरण पोषण के भत्ते में परिवर्तन हो सकता है ?
1. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 127 में धारा 125 की उपपधारा 1 के तहत भरण पोषण के लिए या अंतरिम भरण पोषण के लिए मासिक भत्ता पाने वाले पत्नी, संतान और माता पिता और भरण पोषण के लिए भत्ता देने वाले किसी व्यक्ति परिस्थ्तितियों में परिवर्तन हो हो जाता है और ऐसा परिवर्तन साबित हो जाने पर मजिस्ट्रेट जैसा उचित समझे अंतरिम भरण पोषण के लिए दिए जाने वाले भत्ते में जैसी स्थिति हो परिवर्तन कर सकता है।
2.जहाँ मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है की धारा 125 के तहत भरण पोषण के लिए दिए जाने वाले भत्ते के अधीन कोई आदेश किसी सक्षम सिविल न्यायालय के किसी निर्णय के परिणामस्वरूप रद्द या परिवर्तन किया जाना चाहिए वहां, वाद जैसी स्थिति में हो, उस आदेश को रद्द या परिवर्तित कर दिया जायेगा।
मजिस्ट्रेट कब किसी स्त्री के पक्ष में पारित भरण पोषण के भत्ते के आदेश को रद्द कर सकता है ?
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 127 की उपधारा 3 के तहत धारा 125 के अधीन भरण पोषण के लिए भत्ता देने का आदेश किसी ऐसी स्त्री के पक्ष में दिया जाता है जिसके पति ने उससे विवाह विच्छेद (डाइवोर्स) कर लिया या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है वहां मजिस्ट्रेट को समाधान हो जाने पर यानी ऐसी सूचना मिलने पर :-
- उस स्त्री ने अपने विवाह विच्छेद की तिथि के बाद फिर से दुबारा विवाह कर लिया है, तो मजिस्ट्रेट भत्ते के आदेश को उस स्त्री के पुनर्विवाह की तिथि से रद्द कर देगा।
- उस स्त्री के पति ने उससे विवाह विच्छेद कर लिया है और उस स्त्री ने भत्ते के आदेश के बाद या पहले पूरी धनराशि प्राप्त कर ली है जो पक्षकारों में लागु होने वाली किसी रूढ़िजन्य या पर्सनल लॉ के अधीन विवाह विच्छेद पर देनी थी, तो मजिस्ट्रेट भत्ते के आदेश को उस दशा में जिसमे ऐसी धनराशि भत्ते के आदेश से पहले दे दी गयी थी, तो मजिस्ट्रेट ऐसे भत्ते के आदेश के दिए जाने की तिथि से उस भत्ते को रद्द कर देगा।
- किसी अन्य दशा यदि कोई हो जिसके लिए पति द्वारा उस स्त्री को वास्तव में भरण पोषण दिया गया है, उस भरण पोषण के दिए जाने की अवधि की समाप्ति की तिथि से मजिस्ट्रेट उस भत्ते के आदेश को रद्द कर देगा।
- उस स्त्री ने अपने पति से विवाह विच्छेद प्राप्त कर लिया है और उसने अपने विवाह विच्छेद के बाद अपने भरण पोषण या अंतिरम भरण पोषण जैसी स्थिति हो इन अधिकारों का त्याग अपनी इच्छा से कर दिया था, तो मजिस्ट्रेट भत्ते के आदेश को उस तिथि से रद्द कर देगा।
- किसी भरण पोषण या दहेज की वसूली की डिक्री करने के समय सिविल न्यायालय उस राशि की गणना करेगा जो ऐसे आदेश जहाँ किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे धारा 125 के अधीन कोई भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के लिए या उनमे से किसी के लिए कोई मासिक भत्ता दिए जाने का आदेश दिया गया है तो ऐसे आदेश का अनुसरण भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण या उनमे से किसी जैसी स्थिति हो मसिक भत्ते के रूप में उस व्यक्ति को दे जा चुकी है या उस व्यक्ति द्वारा वसूली जा चुकी है तो मजिस्ट्रेट उस भत्ते के आदेश को रद्द कर देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 128 के तहत भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण और वाद की कार्यवाहियों में लगने वाले खर्चे जैसी भी स्थिति हो इनके आदेश की प्रति उस व्यक्ति को जिसके पक्ष में भरण पोषण के भत्ते का आदेश दिया गया है या उसके संरक्षक को यदि कोई हो या उस व्यक्ति को जिसे भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण के लिए भत्ता और कार्यवाहियों के खर्चे जैसी स्थिति हो दिया है भत्ते के आदेश की प्रति निःशुल्क दी जाएगी।
भरण पोषण या अंतरिम भरण पोषण और कार्यवाहियों के खर्चे के आदेश को लागु करने का स्थान वह होगा जहाँ वह व्यक्ति निवास करता है जिसके विरुद्ध भरण पोषण के भत्ते व् खर्चे का आदेश दिया गया था।
किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पक्षकारों की पहचान के बारे में, भत्ता या दिए जाने वाले खर्चे के बारे में जैसी भी स्थिति हो ऐसे भत्ते व् खर्चे के न दिए जाने के बारे में मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाने पर भत्ते के आदेश को लागु किया जा सकता है।
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