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नमस्कार दोस्तों,
आज के इस लेख में आप सभी को " कंपनी (संशोधन) बिल 2019 " के बारे में बताने जा रहा हु। किसी भी अधिनियम में संशोधन होने का मतलब है उस अधिनियम में आवश्यकता अनुसार बदलाव कर उसमे नए प्रावधानों को जोड़ना। संशोधन का मतलब यह नहीं है कि अधिनियम की सभी धाराओं में कुछ बदलाव किया जाना। जैसी आवश्यकता होती है वैसे ही धाराओं को अधिनियम में जोड़ा जाता है।
कंपनी संशोधन बिल 2019
व्यापर में सरलता लाने के लिए कंपनी अधिनियम 2013 में कुछ संशोधन किये गए जिसको कंपनी संशोधन बिल 2019 के रूप में जाना जाता है। इस अधिनियम में निम्न संशोधन किये गए है जो कि इस प्रकार से है :-
1. कंपनी अधिनियम की धारा 10 अ :- व्यवसाय शुरू करना।
कंपनी संशोधन बिल 2019 के तहत कोई कंपनी अपना व्यापार तभी शुरू कर सकती है जब :-
- कंपनी के संस्थापन के 180 दिनों के भीतर इस बात की पुष्टि करे कि कंपनी के मेमोरेंडम के हर एक सब्सक्राइबर ने अपने उन सभी शेयर का मूल्य चूका दिया है, जिन्हे उन्होंने लेने की अपनी सहमति जताई थी।
- कंपनी के संस्थापन के 30 दिनों के भीतर कंपनी रजिस्ट्रार में पंजीकृत अपने कार्यालय के पते का वेरिफिकेशन फाइल करना होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता है और यह पाया जाता है कि उसने अपना व्यवसाय शुरू नहीं किया है, तो कंपनी का नाम, कंपनी रजिस्ट्रार से हटाया जा सकता है।
2. बेनिफिशियल ओनरशिप।
अधिनियम के तहत यदि कंपनी में किसी व्यक्ति का कम से कम 25 प्रतिशत शेयरों पर बेनेफिशियल इंटरेस्ट है या वह व्यक्ति कंपनी में महत्वपूर्ण प्रभाव या नियंत्रण रखता है, तो उसे इन बेनेफिशियल इंटरेस्ट की घोषणा करनी होती है। कंपनी बिल 2019 के तहत प्रत्येक कंपनी बेनेफिशियल ओनर को चिन्हित करने के लिए आवश्यक कदम उठाये और अधिनियम का अनुपालन करे।
3 डेमैटीरियलाइज्ड शेयर जारी करना :-
कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पब्लिक कंपनी की कुछ श्रेणियों से केवल डेमैटीरियलाइज्ड प्रारूप में शेयर जारी करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन यह संशोधित बिल कहता है कि गैर सूचीबद्ध कंपनियों की अन्य श्रेणियों के लिए भी डेमैटिरिलयाइज्ड शेयर जारी करने के लिए विनिर्दिष्ट किया जा सकता है।
4. कंपनी अधिनियम की संशोधित धारा 77 चार्जेज का पंजीकरण।
कंपनी अधिनियम के तहत कंपनियां अपनी संपत्ति से सम्बंधित चार्जेज जैसे कि मॉर्टगेज का पंजीकरण, चार्ज के निर्माण के 30 दिनों के भीतर कर ले। रजिस्ट्रार पंजीकरण की इस अवधि को 300 दिन कर सकता है। यदि चार्ज का निर्माण कंपनी संशोधन 2019 के बाद किया गया है , तो चार्ज का पंजीकरण 60 दिनों के भीतर करा ले।
5 निगम सामजिक दायित्व (सीएसआर):-
- कंपनी अधिनियम के तहत जिन कंपनियों में निगम सामजिक दायित्व का प्रावधान है, यदि ऐसी कंपनियां निगम सामजिक दायित्व की पूरी धनराशि का उपयोग नहीं करती है, तो इन कंपनियों को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में धनराशि न इस्तेमाल किये जाने का खुलासा करना होगा। कंपनी संशोधन बिल के अंतर्गत निगम सामजिक दायित्व की हर वर्ष न खर्चा न होने वाली धनराशि वित्तीय वर्ष के छह महीनो के भीतर अधिनियम की अनुसूची 7 के अंतर्गत आने वाली निधियों में से किसी एक में हस्तांतरित हो जाएगी जैसे कि :- प्रधान मंत्री रहत कोष।
- यदि निगम सामजिक दायित्व की धनराशि कुछ चालू परियोजनाओं के लिए है, तो खर्चा न होने वाली धन राशि वित्तय वर्ष के समाप्त होने के 30 दिनों के भीतर एक न खर्चे किये गए निगम सामजिक दायित्व के खाते में हस्तांतरित हो जाएगी। जिसे ३ वर्षो में खर्च करना होगा। 3 वर्ष के बाद बची राशि अधिनियम की अनुसूची 7 में उल्लिखित निधियों में से किसी एक में हस्तांतरित हो जाएगी।
- किसी भी प्रकार का उल्लंघन करने पर 50000 रूपये से लेकर 2500000 रुपयुए तक जुर्माना भरना पड़ सकता है।
- उल्लंघन करने वाले हर एक अधिकारी को 3 वर्ष के कारावास की सजा से दण्डित किया जा सकता है और 50000 से लेकर 2500000 तक जुर्माना भी भरना पड़ सकता है या दोनों प्रकार की सजा से दण्डित किया जा सकता है।
6 ऑडिटर्स को प्रतिबंधित करना।
अधिनियम के अंतर्गत दोष सिद्ध होने पर नेशनल फाइनेंसियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी किसी सदस्य या फर्म को 6 महीने से लेकर 10 साल के बिच तक चार्टेड अकाउंटेंट के तौर में प्रैक्टिस करने पर प्रतिबंधित कर सकती है। कंपनी संशोधन बिल सजा में संशोधन करता है कि उसे कंपनी के ऑडिटर या इंटरनल ऑडिटर के तौर पर नियुक्त नहीं किया जायेगा या 6 महीने से लेकर 10 साल की अवधि के बीच कमपनी के मूल्यांकन का कार्य नहीं कर सकता है।
7 मंजूरी देने वाले प्राधिकरण में परिवर्तन।
अधिनियम के अंतर्गत अगर किसी विदेशी कंपनी से जुडी कोई कंपनी वित्तीय वर्ष की अवधि में परिवर्तन करती है, तो उसे ऐसे परिवर्तन करने से पहले राष्ट्रीय कंपनी के ट्रिब्यूनल से मंजूरी लेनी होगी। इसी प्रकार अगर कोई कंपनी अपने संथापन सम्बन्धी दस्तावेजों में बदलाव करती है जिससे कंपनी प्राइवेट कंपनी में परिवर्तित हो जाये, तो इसके लिए भी ट्रिब्यूनल से मंजूरी लेना आवश्यक है। कंपनी संशोधन बिल के अंतगर्त इन अधिकारों को केंन्द्र सरकार को हस्तांतरित किया गया है।
8 पद पर बने रहने पर प्रतिबन्ध।
अधिनयम के तहत केंद्र सरकार या कुछ स्टॉकहोल्डर कंपनी के मामलों के कुप्रबंधन के विरुद्ध नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में राहत के लिए आवेदन कर सकते है। ऐसी शिकायत पर सरकार कंपनी के किसी अधिकारी के विरुद्ध धोखाधड़ी या लापरवाही के कारण वह कंपनी में बने रहने योग्य नहीं है, इस आधार पर मामला दायर कर सकती है। यदि नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल किसी अधिकारी के विरुद्ध आदेश जारी करता है, तो वह अधिकारी 5 वर्षो के लिए किसी भी कम्पनी में किसी भी पद पर नहीं रह सकता है।
9. कुछ अपराधों का पुनर्वर्गीकरण।
कंपनी अधिनियम 2013 के तहत अधिनियम में 81 कम्पाउंडिंग अपराधों का प्रावधान किया गया है, जिनके लिए जुर्माना या कारावास या दोनों प्रकार की सजा का प्रावधान किया गया है। इन अपराधों की सुनवाई न्यायालय द्वारा की जाती है। कंपनी संशोधन बिल 2019, के तहत इन 81 अपराधों में से 16 अपराधों को सिविल डिफॉल्ट्स में वर्गीकृत किया गया जिनमे जुर्माना वसूलने का अधिकार एडजुकेटिंग अधिकारी को दिया गया, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी।
10. कम्पाउंडिंग।
कंपनी अधिनियम 2013 के तहत एक क्षेत्रीय निदेशक 5 लाख रूपये तक के जुर्माने वाले अपराधों को सेटल कर सकता है, कंपनी संशोधन बिल 2019, के तहत अब इस जुर्माने की सीमा को 5 लाख से बढाकर 25 लाख कर दिया गया है।
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