न्याय पंचायत क्या है और न्याय पंचायत का क्षेत्राधिकार कहाँ तक है Constitution and jurisdiction of nyay panchayat
न्याय पंचायत है और न्याय पंचायत का क्षेत्राधिकार कहाँ तक है constitution of nyay panchayat and jurisdiction of nyay panchayat |
1.उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम धारा 42 में न्याय पंचायत की स्थापना का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत राज्य सरकार या विहित प्राधिकारी जिलों को मंडल में विभाजित करेगा, हर एक मंडल ग्राम पंचायत के क्षेत्राधिकार में उतने ग्राम सम्मिलित होंगे जितने इष्टकर हो यानी उचित हो, राज्य सरकार या विहित प्राधिकारी हर एक मंडल के लिए एक न्याय पंचायत की स्थापना करेगा।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि हर एक ग्राम पंचायत के क्षेत्र जहाँ तक संभव है आपस में जुड़े होंगे।
2. अधिनियम के तहत हर एक न्याय पंचायत में कम से कम 10 सदस्य या अधिक से अधिक 25 सदस्य होंगे जो निर्धारित किये जायें, लेकिन न्याय पंचायत के लिए यह वैध (विधिसम्मत) होगा कि उनके सदस्यों के किसी स्थान के रिक्त (खाली )होते हुए भी न्याय पंचायत अपना काम करती रहे, लेकिन ऐसा तभी सम्भव होगा जब तक कि उसके पांचों की संख्या निर्धारित संख्या से दो तिहाई कम नहीं होनी चाहिए।
न्याय पंचायत क्या है इन 5 बिंदुओं से आपको आसानी से समझ आएगा।
- न्याय पंचायत को ग्राम पंचायत की न्यायपालिका कहा जाता है, क्योकि यह न्याय का कार्य करती है, गावं में होने वाले विवादों का पक्षपात किये बिना निपटारा करती है।
- न्याय पंचायत में एक सरपंच और उपसरपंच होते है।
- न्याय पंचायत में कम से कम 10 या अधिक से अधिक 25 तक सदस्य होते है।
- न्याय पंचायत पांचो का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होता है।
- न्यायपंचायत को दीवानी और माल के छोटे मुकदमे सुनने का अधिकार है।
उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम की धारा 43 के तहत न्याय पंचायत के पंचो की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत ग्राम पंचायत के सदस्यों में से विहित प्राधिकारी (अधिकारी ) जितने नियत किये जाये, न्याय पंचायत के पंच की नियुक्ति करेगा और उसके बाद इस प्रकार जो व्यक्ति पंच के लिए नियुक्त किये जायेंगे , वे सदस्य ग्राम पंचायत के सदस्य नहीं रहेंगे और ग्राम पंचायत में उनके स्थान अपर , जहाँ तक सम्भव हो उस रिक्त (खली ) स्थान को उसी रीती से भरा जायेगा कि अधिनियम की धारा 12 में दिया गया है।
न्याय पंचायत का स्थानीय क्षेत्राधिकार कहाँ तक है ?
उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम धारा 51 में न्याय पंचायत की उस स्थानीय अधिकारिता का उल्लेख किया गया है जिसके अंतर्गत दीवानी और फौजदारी के मुक़दमे दाखिल किये जाते है जैसे कि:-
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किसी बात के होते हुए भी, फौजदारी का ऐसा हर एक मुकदमा जो न्याय पंचायत के द्वारा विचारणीय हो उस मंडल के न्याय पंचायत के सरपंच के समक्ष दायर किये जायेंगे जिस मण्डल में ऐसा अपराध किया गया है।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में किसी बात के होते हुए भी, उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम के अधीन दायर दीवानी का हर एक मुकदमा उस मंडल की न्याय पंचायत के सरपंच के समक्ष दायर किया जायेगा, जिसमे प्रतिवादी एक हो या अधिक हो, तो सभी प्रतिवादी सिविल मुकदमा दायर होने के समय सामान्य रूप से जहाँ निवास करते हो या व्यापर करते हो, भले ही मूल वाद कहीं भी उत्पन्न हुआ हो।
- धारा 140 - अन्य व्यक्ति के द्वारा जो सेना बल में नहीं है सैनिक, नौसैनिक या वायु सैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक या टोकन पहनता है।
- धारा 172 - समनों की तामील का या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना।
- धारा 174 -लोक सेवक का आदेश न मानकर गैरहाजिर रहना।
- धारा 179 -प्राधिकृत लोकसेवक द्वारा प्रश्न करने पर उसका उत्तर देने से इंकार करना।
- धारा 269- लापरवाही से किया गया कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रमण फैलना संभावित हो।
- धारा 277- लोक जल स्रोत या जलाशय के जल को दोषित या गन्दा करना।
- धारा 283- लोक मार्ग नौ -परिवहन के रास्ते में संकट या बाधा उत्पन्न करना।
- धारा 285-अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के सम्बन्ध में लापरवाही पूर्ण कार्य करना।
- धारा 289-जीव-जंतु के सम्बन्ध में लापरवाहीपूर्ण कार्य करना।
- धारा 290-अन्य अनुबंधित मामलो में लोक न्यूसेंस के लिए दंड।
- धारा 294-अश्लील कार्य और अश्लील गाने गाना।
- धारा 323-स्वेच्छया उपहति कारित करने के दंड।
- धारा 334-प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति करीत करना।
- धारा 341- सदोष अवरोध के लिए दंड।
- धारा 352-गंभीर प्रकोपन होने से या हमला करने या आपराधिक बल का प्रयोग करने के लिए दंड।
- धारा 357-किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्न में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना।
- धारा 358-गंभीर प्रकोपन मिलने पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना।
- धारा 374-किसी व्यक्ति मर्जी के बिना श्रम करने के लिए विवश करना।
- धारा 379- चोरी के लिए दंड।
- धारा 403- संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग करना।
- धारा 411-चुराई हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना। (धारा 379,403 व् 411 के अधीन मुक़दमे में चुराई गयी या दुर्विनियोग वास्तु का मूल्य 50 रु से अधिक न हो)
- धारा 426- नुकसान के लिए दंड।
- धारा 428-दस रूपये के मूल्य के जिव-जंतु का वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि।
- धारा 430-सिंचन संकर्म को क्षति करने या जल को दोषपूर्वक मोड़ने द्वारा रिष्टि।
- धारा 431-लोक सड़क, पल ,नदी या जल सरणी को क्षति पहुँचाना।
- धारा 445-गृह-भेदन।
- धारा 448-गृह -अतिचार के लिए दंड।
- धारा 504-लोक- शांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से किया गया अपमान।
- धारा 509-शब्द, अंग विक्षेप या अर्थ जो किसी स्त्री की लज्जा अनादर करने के आशय से किया गया कार्य।
- धारा 510- मत्त यानी नशीले पदार्थ के सेवन कर व्यक्ति द्वारा लोक-स्थान में अवचार/ दूरचार / दुराचरण।
शांति बनाये रखने के लिए प्रतिभूति।
उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम धारा 53 में शांति बनाये रखने के लिए प्रतिभूति का प्रावधान किया गया है जो कि :-
- जब किसी न्याय पंचायत के सरपंच को यह आशंका करने का कारण हो, की कोई व्यक्ति शांति भंग करेगा या सार्वजानिक शांति में बाधा डालेगा या बाधा उत्पन्न करेगा तो उस व्यक्ति से कारण बतलाने के लिए कह सकता है कि वह 15 दिन से अधिक समय के लिए निश्चित शांति बनाये रखने के लिए 100 रु /- से अनधिक की धनराशि प्रतिभूति सहित या रहित का बांड निष्पादित क्यों न करे।
- सरपंच द्वारा ऐसी नोटिस जारी करने के बाद उक्त बेंच या तो उस आज्ञा को पुष्ट कर सकती है या ऐसे व्यक्तियों या साक्षियों का बयान सुनने के बाद जिन्हे वह (जिस व्यक्ति से प्रतिभूति लेनी है )पेश करना चाहे, उस नोटिस को डिस्चार्ज कर सकती है।
- यदि वह व्यक्ति जिसे अधिनियम की धारा 53 उपधारा 2 के तहत पहले लिखित रूप में बांड निष्पादित करने का आदेश दिया गया हो, या ऐसा न करे तो अधिक से अधिक 5 रु /- के हिसाब से उतना अर्थ दंड जितना बेंच निर्धारित कर, उतने दिनों के लिए अदा करने का भागी होगा, जितने दिनों तक आज्ञा में निर्धारित की गयी चूक जारी रहे।
Thank you🙏
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