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सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 22 पक्षकारों की मृत्यु, विवाह और दिवाला की परिस्थित में वाद का क्या होगा Order 22 of the Cpc- death, marriage and insolvency of parties

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नमस्कार दोस्तों,

आज के इस  लेख में आप सभी को "सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 22 - पक्षकारों की मृत्यु, विवाह या दिवाला" हो जाने पर सिविल न्यायालय में दायर वाद का क्या होगा इसके बारे में बताने जा रहा हु।

सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 22 पक्षकारों की मृत्यु, विवाह और दिवाला की परिस्थित में वाद का क्या होगा Order 22 of the Cpc- death, marriage and insolvency of parties.

सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 22 क्या कहता है ?
सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 22 जो कि यह प्रावधान करता है कि यदि सिविल न्यायालय में दायर वाद के अंतिम निर्णय से पहले किसी पक्षकार की मृत्यु, विवाह और दिवाला हो जाने की परिस्थित में उस वाद का क्या होगा इसका प्रावधान किया गया है। इसके लिए आदेश 22 में कुछ नियम दिए गए जो इस इन निम्नलिखित परिस्थितियों में लागु होंगे।

आदेश 22 नियम 1 -  यदि वाद लेन का अधिकार बना रहता है तो पक्षकार की मृत्यु से उसका उपशमन नहीं हो जाता -  न्यायालय में वाद दायर होने का मतलब है उस वाद में दो पक्षकारो का होना जिसमे एक वादी जो वाद दायर करता है दूसरा वह पक्ष जिसके विरुद्ध वाद दायर किया जाता है, वादी द्वारा वाद दायर करने का उद्देश्य न्यायालय से उपचार मांगना होता है, यदि वाद में अंतिम निर्णय से पहले किसी पक्षकार की मृत्यु हो जाती है वह चाहे वादी हो या प्रतिवादी यदि वाद लेन का अधिकार बचा रहता है, तो वादी या प्रतिवादी की मृत्यु के बाद उस वाद का उपशमन नहीं होगा अर्थात वह वाद समाप्त नहीं होगा।

आदेश 22 नियम 2 - जहाँ कई वादियों प्रतिवादियों में से एक की मृत्यु हो जाती है और वाद लेन का अधिकार बचा रहता है वाहन की प्रक्रिया -   जहाँ किसी वाद में एक से अधिक वादी या प्रतिवादी है और उनमे से किसी की मृत्यु हो जाती है और वहां वाद लाने का अधिकार अकेले वादी या वादियों को या अकेले प्रतिवादी या प्रतिवादियों के विरुद्ध बचा रहता है, वहां न्यायालय अभिलेख (रिकॉर्ड ) में उस भाग की एक प्रविष्टि (एंट्री) कराएगा। जो कि इस उपरोक्त ववाद में वादी या प्रतिवादी की मृत्यु हो गयी है, और उपरोक्त वाद उत्तरजीवी वादी व प्रतिवादियों की प्रेरणा पर या उत्तरजीवी प्रतिवादियों के विरुद्ध आगे चलेगा।

उदाहरण से समझे - जैसे किसी एक वाद में 4 वादी और 4 प्रतिवादी है। वाद के अंतिम निर्णय से पहले इसने से किसी की मृत्यु हो जाती है और इस वाद में वाद लाने का अधिकार वादी या वादियों या प्रतिवादी या प्रतिवादियों को बचा रहता है, तो न्ययालय वाद अभिलक में मृतक वादी या वादियों या प्रतिवादी या प्रतिवादियों की एक प्रविष्टि कराएगा और इस वाद में जीवित वादी या वादियों की प्रेरणा पर जीवित प्रतिवादी या प्रतिवादियों के खिलाफ वाद आगे चलेगा।

आदेश 22 नियम 3 - कई वादियों में से एक या एकमात्र वादी की मृत्यु के दशा में प्रक्रिया -  जहाँ दो या अधिक वादियों में से एक की मृत्यु हो जाती है और वाद लाने का अधिकार अकेले उत्तरजीवी ( जीवित ) वादी को या अकेले उत्तरजीवी (जीवित ) प्रतिवादी को या अकेले उत्तरजीवी वादियों को बचा नहीं रहता है या एकमात्र वादी या एकमात्र जीवित वादी की मृत्यु हो जाती है और वाद लाने का अधिकार बचा रहता है, वहां वाद की कार्यवाही को आगे चालू रखने के लिए विधिक प्रतिनिधि द्वारा इस वास्ते आवेदन किये जाने पर न्ययायालय मृतक वादी के विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनवाएगा और वाद की आगे की कार्यवाही चालू होगी।

आदेश 22 नियम 3 उपनियम 2 - जहाँ वाद में वादी या वादियों की मृत्यु हो जाने पर वाद आगे चलाने के लिए वादी या वादियों के द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा परिसीमित समय के भीतर कोई आवेदन उपनियम  (1 ) के अधीन न्यायलय में नहीं दाखिल किया जाता जो कि विधि द्वारा परिसीमित समय नियत किया गया है, वहाँ वाद का उपशमन वहां तक हो जायेगा जहाँ तक मृतक वादी का सम्बन्ध उस वाद में है और प्रतिवादी के आवेदन पर न्यायालय उन खर्चो को उसके पक्ष में अभिनिर्धारित कर सकेगा जो उसने वाद की प्रतिरक्षा में खर्च किये हो और और ये ख़र्चे मृतक वादी की सम्पदा से वसूल किये जायेंगे।

आदेश 22 नियम 4 - कई प्रतिवादियों  में से एक या एकमात्र प्रतिवादी की मृत्यु की दशा में प्रक्रिया -
जहाँ दो या अधिक प्रतिवादियों में से एक की मृत्यु हो जाती है और वाद लेन का अधिकार अकेले जीवित प्रतिवादी को या अकेले जीवित प्रतिवादियों के विरुद्ध नहीं बचा रहता है या एकमात्र प्रतिवादी या जीवित प्रतिवादी की मृत्यु जो जाती है और वाद लाने का अधिकार बचा रहता है वहां वाद की कार्यवाही को आगे चालू रखने के लिए विधिक प्रतिनिधि द्वारा इस वास्ते आवेदन किये जाने पर न्यायालय मृतक प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को पक्षकर बनवाएगा और वाद की कार्यवाही को आगे चालू करेगा।

आदेश 22 नियम 4 उपनियम 2 - इस प्रकार वाद की कार्यवाही को आगे चालू रखने के लिए पक्षकार बनाया गया कोई भी व्यक्ति जो मृतक प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि के नाते अपनी हैसियत के लिए उचित प्रतिरक्षा कर सकेगा।

यदि विधिक प्रतिनिधि द्वारा वाद चालू रखने के लिए आवेदन नहीं किया गया हो तो क्या होगा ?

आदेश 22 नियम 4 उपनियम 3   - जहाँ प्रतिवादी की मृत्यु हो जाने पर विधि द्वारा परिसीमित समय की भीतर वाद को चालू रखने के लिए कोई आवेदन उपनियम 1 के अधीन नहीं किया जाता है , वहां वाद का उपशमन वहां तक हो जायेगा जहाँ तक वाद मृतक प्रतिवादी के विरुद्ध है।

आदेश 22 नियम 4 उपनियम 4 - जब कभी मृतक प्रतिवादी का विधिक प्रतिनिधि जिसको अब पक्षकार बना दिया गया है, जब भी वह ठीक ससमझे, वादी को किसी ऐसे प्रतिवादी के जो लिखित कथन फाइल करने के असफल रहा है या लिखित कथन फाइल कर देने पाए सुनवाई के समय हाजिर होने में या प्रतिवाद करने में असफल रहा है, विधिक प्रतिनिधि को प्रस्थापपित करने से छूट दे सकेगा और मामले में निर्णय सम्बंधित प्रतिवादी के विरुद्ध उस प्रतिवादी की मृत्यु हो जाने पर भी सुनाया जा सकेगा और उसका वही बल और प्रभाव होगा मानो मृतक प्रतिवादी की मृत्यु होने से पहले सुनाया गया हो।

आदेश 22 नियम 4  उपनियम 5 (क ) -  जहाँ वादी, प्रतिवादी की मृत्यु से अनजान था और उस कारण से वह इस नियम के अधीन प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को प्रस्थापित करने के लिए आवेदन परिसीमा अधिनियम की धारा 36 के तहत निर्धारित अवधि के भीतर आवेदन नहीं कर सकता और जिसके परिणामस्वरूप वाद का उपशमन हो गया है, और

आदेश 22 नियम 4 उपनियम 5 (ख) - जहाँ वादी, परिसीम अधिनियम 1963 की धारा 36 के तहत तहत निर्धारित की गयी अवधि के बीत जाने के बाद उपशमन को अपास्त करने के लिए आवेदन करता है, इस आवेदन को परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत इस आधार पर ग्रहण किये जाने के लिए करता है कि ऐसी अज्ञान के कारण परिसीमा अधिनियम के तहत निर्धारित अवधि के भीतर आवेदन न करने के लिए उसके पास उचित पर्याप्त कारण था ,

वहाँ न्यायालय परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के अधीन वादी द्वारा आवेदन किये जाने पर उस आवेदन पर विचार करते समय ऐसे अज्ञान के तथ्य पर ध्यान पर यदि साबित हो जाता है, तो बराबर ध्यान देगा।

 यदि किसी वाद में मृत व्यक्ति का कोई विधिक प्रतिनिधि नहीं है , तो क्या होगा ?

आदेश 22 नियम 4 (क )-  विधिक प्रतिनिधि न होने की दशा में प्रक्रिया - यदि किसी वाद में न्ययालय को यह प्रतीत होता है कि वाद में किसी ऐसे पक्षकार की मृत्यु वाद के लंबित रहने के दौरान हो गयी है, और कोई विधिक प्रतिनिधि नहीं है, तो न्यायालय वाद के किसी पक्षकार के आवेदन पर, मृतक व्यक्ति की सम्पदा का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति की गैर हाजिर होने पर कार्यवाही कर सकेगा या आदेश द्वारा, महाप्रशासक या न्यायालय के किसी अधिकारी या किसी ऐसे व्यक्ति को जिसको न्यायालय मृतक व्यक्ति की सम्पदा का प्रतिनिधित्व करने के लिए ठीक समझता है, वाद के प्रयोजन के लिए नियुक्त कर सकेगा। वाद में तत्पश्च्यात दिया गया कोई निर्णय या किया गया कोई आदेश मृत व्यक्ति की सम्पदा को उसी सीमा तक आबद्ध करेग जितना कि  वह तक करता जब मृत व्यक्ति का निजी प्रतिनिधित्व वाद में पक्षकार होता।

2. लेकिन न्यायालय इस अधिनियम के अधीन आदेश करने से पहले,
  1. न्यायालय यह उम्मीद कर सकेगा कि मृतक व्यक्ति की सम्पदा में हित रखने वाले ऐसे व्यक्ति को यदि कोई हो , जिसको न्यायालय उचित समझता है, आदेश के लिए आवेदन की सूचना दी जाएगी कि मृतक व्यक्ति के विधिक प्रतिनिधि के रूप में अपने को प्रस्थापित करे। 
  2. न्याययालय या निश्चित करेगा कि जिस व्यक्ति को मृत व्यक्ति की सम्पदा का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया जाना  प्रस्थापित है, वह इस प्रकार नियुक्त किये जाने पर रजामंद है और मृत व्यक्ति के हित में विपरीत / प्रतिकूल कोई हित नहीं रखता। 
मृत वादी या मृत प्रतिवादी का कोई प्रतिनिधि है या नहीं इस सवाल को निर्धारित कौन करेगा ?

आदेश 22 नियम 5 - विधिक प्रतिनिधि के बारे में प्रश्न का अवधारण - जहाँ इस सम्बन्ध में यह सवाल उठता है कि कोई व्यक्ति मृत वादी या मृत प्रतिवादी का विधिक प्रतिनधि है या नहीं वहाँ ऐसे सवाल का निर्धारण न्यायालय द्वारा किया जायेगा। 
परन्तु जहाँ ऐसा सवाल अपील न्यायालय के सामने उठता है वहां वह न्यायालय उस सवाल का निर्धारण करने से अफ्ले किसी अधीनस्थ न्यायालय को यह निर्देश दे सकेगा कि वह उस सवाल का विचारण करे और अभिलेखों को जो ऐसे विचारण के समय दर्ज जिए गए साक्ष्य, यदि कोई हो, अपने निष्कर्ष के और उसके कारणों के साथ वापस करे और अपील न्यायालय उस सवाल को निर्धारित करने में ध्यान रखेगा। 

आदेश 22 नियम 6- सुनवाई के बाद मृत्यु हो जाने से वाद का उपशमन (समाप्त) न होना - पूर्वगामी नियमो में से किसी बात के होते हुए भी, चाहे वाद का कारण बचा हो या न बचा हो, वाद की सुनवाई की समाप्ति और निर्णय के सुनाने के बीच वाले के समय में किसी पक्षकार की मृत्यु हो जाती है, तो मृत्यु के कारण कोई भी उपशमन (समाप्ति) नहीं होगा। किन्तु  ऐसी दशा में मृत्यु हो जाने भी, वाद में निर्णय सुनाया जा सकेगा और उस निर्णय का बल और प्रभाव वैसा ही होगा मानो वह निर्णय पक्षकार की मृत्यु होने से पहले सुनाया गया हो। 

यदि किसी वाद में पक्षकार का विवाह हो जाता है,तो क्या वह वाद समाप्त हो जायेगा। 

आदेश 22 नियम 7- स्त्री पक्षकार के विवाह के कारण वाद का उपशमन(समाप्ति) न होना- वाद में स्त्री वादी या स्त्री प्रतिवादी का विवाह वाद का उपशमन (समाप्ति) नहीं करेगा। लेकिन , ऐसा हो जाने पर भी वाद का निर्णय तक अग्रसर किया जा सकेगा और जहाँ स्त्री प्रतिवादी के विरुद्ध डिक्री है वहां वह  डिक्री उस अकेली के विरुद्ध निष्पादित की जा सकेगी।
2.  जहाँ पति अपनी पत्नी के ऋणों के लिए विधि द्वारा दायी है वहां डेक्क्रे न्यायालय की अनुमति से पति के विरुद्ध भी निष्पादित की जा सकेगी और पत्नी के पक्ष में हुए निर्णय की दशा में डिक्री का निष्पादन उस दशा में जिसमे कि पति दिक्री की विषयवस्तु के लिए विधि द्वारा हाव्दार है, ऐसी अनुमति से पति के आवेदन पर किया जा सकेगा।




5 comments:

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  4. Pita ki death ho gaya hai.pita and disagree person ke bitch Len den ke baad me putra in bhigya hai. Kay pitakedwara public se liye gaye loan ko dene ke liye beta pita ki Marne ke baad jabaab den hai.

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    1. मामला क्या है सही से बताओं ।

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