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सिविल प्रक्रिया संहिता, आदेश 9 मुक़दमे में पक्षकारों की उपस्थिति और अनुपस्थिति होने के परिणाम क्या हो सकते है ? Result of present and absent of parties in lawsuit/case

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नमस्कार दोस्तों,
आज के इस लेख में आप सभी को बताने जा रहा हु की मुक़दमे की सुनवाई के समय पक्षकारों की उपस्थिति और अनुपस्थिति होने के परिणाम क्या हो सकते है ? आप में से कई ऐसे भी होंगे जिनका न्यायालय में किसी न किसी विवाद को लेकर मुकदमा चल रहा होगा। कभी न कभी आपके मन में भी यह सवाल आया होगा की यदि हम मुक़दमे की सुनवाई के दिन न्यायालय सदन में हाजिर न हो सके तो उसका क्या परिणाम हो सकता है। आपके इन्ही सवालो का जवाब आज इस लेख के माध्यम से आपको मिल जायेगा। 
मुक़दमे में पक्षकारों की उपस्थिति और अनुपस्थिति होने के परिणाम क्या हो सकते है ? Result of present and absent of parties in lawsuit/case.
पक्षकारों की उनकी उपस्थिति और अनुपस्थिति का परिणाम क्या हो सकते है ?
किसी मुक़दमे में पक्षकारों से मतलब वादी और प्रतिवादी से है, जहाँ वादी न्यायालय से विधिक उपचार की याचना करता है और वादी (अभ्यर्थी) के द्वारा दर्ज की गयी शिकायत पर एक या अधिक प्रतिवादी को अपने पक्ष में सफाई देनी होती है। मुक़दमे की सुनवाई के समय पक्षकारों को उपस्थिति आवश्यक है। 

सिविल प्रक्रिया संहिता, आदेश 9, नियम 1 से 12 तक पक्षकारों की उपस्थिति और अनुपस्थिति के के परिणाम के के बारे में बताया गया है। 

नियम 1 - पक्षकार उस दिन उपस्थित होंगे जो प्रतिवादी के उपस्थित होने और उत्तर देने के लिए समन में नियत होगा।  
 जो दिन प्रतिवादी के न्यायालय सदन में उपस्थित होने और वादी द्वारा लगाए गए आरोपों के प्रति उत्तर देने के लिए समन में नियत है ( न्यायालय सदन में हाजिर होने की तिथि ) उस दिन पक्षकार स्वयं या अपने वकील द्वारा न्यायालय सदन में हाजिर रहेंगे। 
उस दिन के सिवाए  न्यायालय द्वारा नियत किसी भविष्यकर्ती दिन के लिए सुनवाई स्थगित कर दी जाएगी और वाद उस नियत किये गए दिन सुना जायेगा। 

नियम 2 - जहाँ समन की तामील, वादी द्वारा खर्चे देने में असफल रहने के परिणामस्वरूप नहीं हुई, वहां वाद का ख़ारिज किया जाना। 
जहाँ ऐसे नियत दिन ( न्यायालय सदन में उपस्थित होने की तिथि ) को यह  पाया जाए कि वादी द्वारा प्रतिवादी पर  समन की तामील इस लिए नहीं हुई की वादी द्वारा न्यायालय फीस या डाक फीस जो ऐसी तामील के लिए देय है या आदेश 7 के नियम 9 द्वारा मांगे गए  वाद पत्र की या संक्षिप्त कथन की प्रतियां पेश करने में असफल रहा है, तो ऐसे में वहां न्ययालय उस वाद में यह आदेश कर सकेगा कि  वाद ख़ारिज कर दिया जाये। 
 लेकिन, ऐसी असफलता के होते हुए भी, यदि प्रतिवादी उस दिन जो उसके उपस्थित होने और उत्तर देने के लिए समन में नियत है स्वयं उपस्थित हो जाता है, तो ऐसा कोई आदेश नहीं किया जायेगा।

नियम 3- जहाँ दोनों पक्षकार में से कोई भी पक्षकार उपस्थित नहीं होता है वहाँ वाद का खरिज किया जाना। 
जहाँ किसी वाद की सुनवाई के लिए पुकार होने पर न्यायालय सदन में वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षकार उपस्थित नहीं होते है, वहाँ न्यायालय यह आदेश दे सकेगा कि वह वाद ख़ारिज कर दिया जाये। 

आदेश 9 नियम 2 व् 3 के तहत वाद ख़ारिज कर दिया तो क्या पुनर्स्थापित हो सकता है ?

नियम 4- वादी नया वाद ला सकेगा या न्यायलय वाद को फाइल पुनर्स्थापित कर सकेगा। 
नियम 2 के तहत जहाँ समन की तामील वादी द्वारा खर्चे देने में वादी असफल रहने के कारण नहीं हुई जिसके कारण वाद ख़ारिज कर दिया जाता है या नियम 3 के तहत वादी और प्रतिवादी की अनुपस्थिति के कारण वाद ख़ारिज कर दिया जाता है, वहां वादी परिसीमा अधिनियम के अधीन नया वाद ला सकेगा या ख़ारिज वाद को अपास्त करने के आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा।  लेकिन ऐसा करने के लिए वादी को यह न्यायालय का समाधान करना होगा कि न्यायालय सदन में मुक़दमे की सुनवाई के दिन अनुपस्थिति होने के लिए पर्याप्त कारण था , तो न्यायालय उस वाद की खरीजी को अपास्त करने के लिए आदेश करेगा और उस वाद में आगे की कार्यवाही करने के लिए एक दिन नियत करेगा।  

नियम 5 - जहाँ वादी, समन तामील के बिना लौटने के बाद एक माह तक नए समन के लिए आवेदन करने में असफल रहता है, वहां वाद का ख़ारिज किया जाना। 
जहाँ न्यायालय सदन में उपस्थित होने के लिए समन प्रतिवादी या कई प्रतिवादियों में नाम समन निकाले जाने और तामील के बिना लौटाए जाने के बाद उस तिथि से एक माह की अवधि तक जिसकी न्यायालय को उस अधिकारी ने विवरण दिया है जो तामील करने वाले अधिकारियो द्वारा दी जाने वाली विवणियो को न्यायालय मामूली तौर से प्रमाणित करता है।  
वादी न्यायालय से नए समन निकालने के लिए आवेदन करने में असफल रहता है, तो वहां न्यायालय यह आदेश करेगा की वाद ऐसी प्रतिवादी के खिलाफ खरीजी किया जाये। 

यदि वादी ने न्यायालय का यह समाधान उक्त अवधी के भीतर कर दिया है की -
  1. जिस प्रतिवादी पर समन की तामील नहीं हुई है इसका कारण यह है कि वादी द्वारा सर्वोत्तम प्रयास करने के बाद भी प्रतिवादी का निवास स्थान का पता नहीं चला,
  2. ऐसा प्रतिवादी आदेशिका की तामील होने देने से स्वयं को बचा रहा है,
  3. समन तामील समय को बढ़ाने के लिए कोई आयु पर्याप्त कारण है, तो ऐसा आवेदन करने के लिए समय को न्यायालय इतनी अवधि तक बढ़ा सकेगा जितना ठीक समझे,
  4. ऐसी दशा में वादी परिसीमा अधिनियम के अधीन नया वाद ला सकेगा। 
नियम 6 - जब केवल वादी उपस्थ्ति होता है और प्रतिवादी अनुउपस्थित तब की प्रक्रिया। 
न्यायलय सदन में जहाँ वादी की सुनवाई के लिए पुकार होने पर वादी उपस्थित होता है और प्रतिवादी उपस्थित नहीं होता वहां पर:-
  1. जब समन की तामील सम्यक (विधिवत ) रूप की गयी है- यदि यह बात साबित हो जाती है कि समन की तामील विधिवत रूप से की गयी थी और प्रतिवादी न्यायालय सदन में अनुपस्थित है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय आदेश कर सकेगा की वाद की एकपक्षीय  सुनवाई होगी ,अनुपस्थित
  2. जब समन की तामील सम्यक (विधिवत) रूप से न की गयी है - यदि यह बात साबित नहीं होती की  समन की तामील सम्यक रूप से की गयी थी जिसके कारण प्रतिवादी सुनवाई के समय न्यायालय सदन में उपस्थित हो सका तो ऐसे में न्यायालय यह आदेश देगा की ऐसी स्थिति में समन पुनः निकाला जाये और उसकी तामील प्रतिवादी पर की जाए ,
  3. जब समन की तामील तो हुई है किन्तु सम्यक ( विधिवत ) समय में न हुई हो- यदि यह बात साबित हो जाती है कि समन की तामील प्रतिवादी पर हुई थी लेकिन पर्याप्त समय पर नहीं हुई थी समन में नियत दिन को उपस्थित होने और उत्तर देने को उसे समर्थ करने के लिए उस पर्याप्त समय मिल जाता, तो न्यायालय वाद की सुनवाई को किसी भविष्यवर्ती दिन के लिए स्थगित करेगा और निर्देश देगा की ऐसे सुनवाई के दिन की सूचना प्रतिवादी को दी जाए। 
  4. जहाँ समन की तामील सम्यक रूप से या पर्याप्त समय के भीतर वादी की भूल चूक के कारण नहीं हुई है, वहां न्यायलय वादी को यह आदेश देगा की स्थगित होने के कारण होने वाले खर्चो को वह देगा। 
नियम 7 -जहाँ प्रतिवादी स्थगित सुनवाई के दिन उपस्थित होता है और पूर्व अनुपस्थित  अच्छा कारण दिकहत है वहाँ की प्रक्रिया।  
जहाँ किसी वाद की सुनवाई पर प्रतिवादी की अनुपस्थित के कारण न्यायालय ने एकपक्षीय रूप में वाद की सुनवाई को स्थगित कर दिया है और प्रतिवादी ऐसी सुनवाई के दिन या पहले उपस्थित हो जाता है और अपनी पूर्ण अनुपस्थित के लिए पर्याप्त कारण दिखाता है वहां न्यायालय ऐसे निबन्धनों जो न्यायालय खर्चो और अन्य बातो के बारे में निर्दिष्ट करे। प्रतिवादी वाद के उत्तर में उसी भांति सुना जा सकेगा मनो वह अपनी उपस्थिति के लिए निश्चित किये गए दिन को उपस्थित हुआ था। 

नियम 8 - जहाँ केवल प्रतिवादी उपस्थित होता है वादी अनुपस्थित तब वहां की प्रक्रिया। 
जहाँ किसी वाद की सुनवाई के लिए पुकार होने पर पक्षकारों में से केवल प्रतिवादी उपस्थित होता है और वादी अनुपस्थित तो ऐसी स्थिति में न्यायालय यह आदेश करेगा कि वाद को ख़ारिज किया जाए। 
लेकिन, यदि प्रतिवादी दावे या उसके भाग को स्वीकार कर लेता है तो न्यायालय प्रतिवादी की इस स्वीकृति पर प्रतिवादी के खिलाफ डिक्री पारित करेगा, 
जहाँ पर दावे का केवल भाग ही स्वीकार किया गया हो वहाँ वह वाद को वहाँ तक ख़ारिज करेगा जहाँ तक उसका सम्बन्ध बचे दावे से है। 

नियम 9- भूल चूक के कारण वादी के खिलाफ पारित डिक्री नए वाद का वर्ण करती है।  
जहाँ नियम 8 के अधीन पूर्णतः और भागतः वाद ख़ारिज कर दिया जाता है वह वादी उसी वाद कारण के लिए नया वाद लाने पर रोक लगा देता हैं। 
लेकिन वह ख़ारिज किये गए वाद को अपास्त करने के आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा और न्यायालय का समाधान कर देता है कि जब वाद की सुनवाई के लिए पुकार हुई थी उस समय अनुपस्थित के पर्याप्त कारण थे तो न्यायलय वाद की खारिजी को अपास्त करने का आदेश करेगी और वाद में आगे की कार्यवाही करने के लिए दिन निश्चित करेगी। 
2.  नियम 8 के अधीन कोई आदेश तब तक  नहीं किया जायेगा जब तक की आवेदन की सूचना की तामील पक्षकार पर न कर दी गयी हो।   

नियम 10 -  कई वादियों में से एक या अधिक की अनुपस्थिति की दशा में प्रक्रिया। 
जहाँ किसी वाद में एक या एक से अधिक वादी है और वाद की सुनवाई के लिए पुकार होने पर उनमे से एक या अधिक वादी उपस्थित होते है और अन्य वादी अनुपस्थित होते है, ऐसी दशा में न्यायालय उपस्थित होने वाले वादी या वादियों की प्रेरणा पर वाद को ऐसे आगे चलने दे सकेंगे मनो सभी वादी उपस्थित हुए हो, या न्यायालय जैसा थी कसमझे वीएस आदेश कर सकेगा। 

नियम 11 - कई प्रतिवादियों में से एक या अधिक की अनुपस्थिति की दशा में प्रक्रिया। 
जहाँ किसी वाद में एक या अधिक प्रतिवादी है और वाद की सुनवाई के लिए पुकार होने पर उनमे से एक या अधिक प्रतिवादी उपस्थिति होते है और अन्य अनुपस्थित तो ऐसी दशा में वाद आगे चलेगा और न्यायालय उस वाद में अपना निर्णय सुनाने के समय उन प्रतिवादियों के सम्बन्ध में जो अनुपस्थित हुए है, जैसा ठीक समझे आदेश कर सकेगा। 

नियम 12 - स्वयं उपस्थित होने के लिए आदेशित पक्षकार के पर्याप्त कारण दर्शित किये बिना अनुपस्थित रहने के परिणाम। 
जहाँ किसी वाद की सुनवाई के लिए वादी या प्रतिवादी, जिसे स्वयं उपस्थित होने के लिए आदेश किया गया है, स्वयं उपस्थित नहीं होते है या अनुपस्थित होने पर न्यायालय का समाधान करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं दर्शित कर पाते, वहां पूर्वगामी नियमो के उन सभी उपबंधों के अधीन होगा जो ऐसे वादियों और प्रतिवादियों को जो अनुपस्थित है यथास्थित लागु होते है।

4 comments:


  1. आपके नोट्स से मैं लॉ कॉलेज में पढ़ा रहा हूँ।माध्यस्थम विधि पर नोट्स दिलवाइये।

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  2. आपके नोट्स से मैं सीपीसी पढ़ा रहा हूँ।स्टूडेंट्स समझ पा रहे है। माध्यस्थम विधि पर नॉट दीजिए

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