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सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत सिविल वादों को संस्थित या दाखिल करने सम्बंधित प्रावधान क्या है ? Provision for institution of suit / filing of suit under the code of civil procedure?

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नमस्कार दोसतों,
आज के इस लेख में आप सभी को सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत सिविल वादों / मुकदमों को संस्थित या दाखिल करने सम्बंधित प्रावधान क्या है इसके बारे में बताने जा रहा हु। सिविल विवादों से सम्बंधित मुकदमों को दर्ज करने के लिए हमे इस बात का सम्पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है की सिविल मुकदमा दर्ज करने का स्थान क्या होगा। सिविल प्रक्रिया संहिता 1908, की कुछ धाराएं ऐसी है जिसमे वाद / मुकदमा दायर/ दाखिल / दर्ज करने सम्बन्धी प्रावधान किये गए है। 

सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत सिविल वादों को संस्थित या दाखिल करने सम्बंधित प्रावधान क्या है ? Provision for institution of suit / filing of suit under the  code of civil  procedure?

सिविल मुकदमा दर्ज करने के स्थान के बारे में प्रावधान क्या है ?
सिविल विवादों से सम्बंधित मुकदमा दर्ज करने के बारे में सिविल प्रक्रिया संहिता 1908,की धारा 15 से लेकर 20 तक मुकदमा दर्ज करने के स्थान के बारे में प्रावधान किया गया है। दो पक्षों  पक्षों के मध्य यदि किसी भी प्रकार का सिविल विवाद उत्पन्न होता है, तो उस विवाद के निपटारे के लिए पक्षों को सिविल न्यायालय में मुकदमा दर्ज करवाना होता है, अब बात यह आती है की मुकदमा दर्ज करवाने का स्थान कौन सा होगा कहा पर मुकदमा दर्ज होगा, किस न्यायालय में दर्ज होगा।
आपके इन सभी सवालो के जवाब हम आप आज लेख में देने जा रहे है।

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 15 से लेकर 20 तक मुकदमा दर्ज करने के स्थान सम्बंधित प्रावधान।

  1. धारा 15 - न्यायालय जिसमे मुकदमा / वाद दर्ज किया जायेगा। 
  2. धारा 16 - मुकदमा / वाद का वहां दर्ज किया जाना जहाँ वाद की विषय वस्तु स्थित है। 
  3. धारा 17 - ऐसी अचल संपत्ति से सम्बंधित वाद, जो कई न्यायालयों के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत स्थित है। 
  4. धारा 18 - जहाँ पर न्यायालयों के क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाएं अनिश्चित है, वहाँ मुक़दमे / वाद को दर्ज करने का स्थान। 
  5. धारा 19 -शरीर या चल संपत्ति की क्षति के लिए क्षतिपूर्ति पाने के लिए मुकदमा / वाद दर्ज करने का स्थान।
  6. धारा 20 - अन्य मुक़दमे / वाद वहां दर्ज किए जा सकेंगे जहाँ प्रतिवादी निवास करता है या जहाँ मुक़दमे / वाद उत्पन्न हुआ है। 
इन सभी धाराओं को हम आपको और ही सरलता से समझाने की पूर्णतः कोशिश करते है। 

1. धारा 15 न्यायालय जहाँ मुकदमा / वाद दर्ज किया जायेगा -  सिविल विवाद से सम्बंधित हर मुकदमा / वाद उस निम्नतम श्रेणी के न्यायालय में दर्ज / दाखिल किया जायेगा तो उस मुक़दमे / वाद का विचारण करने के सक्षम है। 

2.धारा 16 मुकदमे / वाद का वहां दर्ज किया जाना जहाँ वाद की विषय वस्तु स्थित है -  जहाँ सिविल विवाद विषय वस्तु की स्थित के सम्बन्ध में तो  हर एक विवाद के निपटारे के लिए मुकदमा / वाद उस न्यायालय में दर्ज किये जायेंगे जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वह संपत्ति स्थित है, या 
उस न्यायालय में जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अंदर प्रतिवादी  वास्तव में या अपनी इच्छा से निवास करता है. कारबार करता है, धन प्राप्ति के लिए खुद काम करता है वहाँ के न्यायालय में मुकदमा / वाद दर्ज किया जा सकेगा।  

विषय वस्तु की स्थिति के सम्बन्ध में उत्तपन हुए विवाद जैसे :-
  1. अचल संपत्ति के किराये की वसूली के लिए मुनाफे या बिना मुनाफे के साथ,
  2. अचल संपत्ति के विभाजन के लिए,
  3. अचल समपत्ति के बंधक, या उस पर के भार की दशा में मोचन या विक्रय के लिए,
  4. अचल संपत्ति में के किसी अन्य अधिकार या हित के अवधारण के लिए,
  5. अचल संपत्ति के प्रति किये गए दोष प्रतिकर के लिए,
  6. कुर्की के वस्तुतः अधीन चल संपत्ति के वसूली के लिए। 
3. धारा 17 ऐसी अचल संपत्ति के सम्बन्ध में वाद, जो कई न्यायालयों के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत स्थित है -
जहाँ अचल संपत्ति के सम्बन्ध में विवाद उतपन्न हुआ है और ऐसी अचल संपत्ति कई न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत स्थित है, तो ऐसी सम्पति के सम्बन्ध में अनुतोष या ऐसी संपत्ति के प्रति किये गए दोष के प्रतिक्र्र के लिए वह वाद किसी भी ऐसे न्यायालय में दर्ज किया जा सकेगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर विवादित संपत्ति का कोई भाग स्थित है।

4. धारा 18 जहाँ न्यायालयों की अधिकारिता की स्थानीय सीमाएं अनिश्चित है वहां मुकदमे / वाद का दर्ज किया जाना - संपत्ति के विवाद को लेकर मुकदमा दर्ज करने के लिए जहाँ यह अभिकथन किया जाता है कि कोई अचल संपत्ति दो या दो से अधिक न्यायालयों की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर स्थित है और उन न्यायालयों की अधिकारिता की स्थानीय सीमाएं अनिश्चित है, तो उस सम्पति के अनुतोष या दोष के प्रतिकर के लिए वहां स्थित उन न्यायालयो में से कोई भी एक न्यायालय यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अभिकथित अनिश्चितता के लिए आधार है, उस भाव का कथन अभिलिखित कर सकेगा और तब जाकर उस विवादित संपत्ति के सम्बंधित किसी किसी भी मुकदमे / वाद की स्वीकृति करने और उस विवादित संपत्ति का निपटारा करने के लिए आगे की कार्यवाही कर सकेगा।
उस मुकदमे / वाद में उसकी डिक्री का वही प्रभाव होगा मानो वह विवादित संपत्ति उस न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर स्थित है।
लेकिन, यह तब होगा जब की वह वाद ऐसा है जिसके सम्बन्ध में न्यायालय उस मुक़दमे / वाद की प्रकृति और मूल्य की दृष्टि से अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए सक्षम है।

5.  शरीर या चल संपत्ति के प्रति किये गए दोषो के लिए  क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमे / वाद का स्थान -
जहाँ शरीर या चल संपत्ति के प्रति किये गए क्षति के प्रति क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा / वाद दर्ज करना है वहां यदि क्षति /दोष एक न्यायलय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर किया गया था और प्रतिवादी किसी अन्य न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर निवास करता है, कारबार करता है, धन कमाने के लिए खुद काम करता है, तो वह वाद वादी के ऊपर निर्भर करता है की वह उक्त न्यायलयों में से किसी भी न्यायालयों अनुतोष या संपत्ति के प्रति किये गए दोष के लिए प्रतिकर के लिए मुकदमा / वाद दर्ज कर सकेगा।

जैसे :- लखनऊ में निवास करने वाला क दिल्ली में ख पर हमला कर उसको बुरी तरह से पीटता है। तो ऐसे में ख के पास दो विकल्प है की वह क के खिलाफ लखनऊ या दिल्ली के न्यायालय में मुकदमा दर्ज कर सकेगा।

6. अन्य मुकदमे/वाद वहां दर्ज किए जा सकेंगे जहाँ प्रतिवादी निवास करता है या जहाँ वाद उत्पन्न हुआ है-   उपर्युक्त परिसीमाओं के अधीन रहते हुए हर एक वाद ऐसे न्यायालय में दर्ज किये जायेंगे जिनकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर है।
  1. जहाँ एक या एक से अधिक प्रतिवादी है वहां प्रतिवादी में से हर एक वाद के प्रारंभ के समय वास्तव में और अपनी इच्छा से निवास करता है, कारबार करता है या धन कमाने के लिए खुद काम करता है। 
  2. वाद हेतुक पूर्णतः या भागतः पैदा होता है। 

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