केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार या लोक-पदाधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की प्रक्रिया क्या है ? Procedure for filing a suit against the central or state government or public officer
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नमस्कार दोस्तों,
आज के इस लेख में आप सभी को यह बताने जा रहा हु कि केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार या लोक-पदाधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की प्रक्रिया क्या है ?
भारतीय संविधान द्वारा नागरिको को मौलिक अधिकार प्रदान किये गए है, उन्ही में से अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समानता के अधिकार को प्रदान करता है। भारत के राज्य्क्षेत्र में रहने वाले किसी भी नागरिक को विधि के समक्ष समता के अधिकार से या विधियों के सामान संरक्षण से वंचित नहीं किया जायेगा। सरकार भी एक विधिक व्यक्ति है और उसका अपना कार्य उसके कर्मचारियों के द्वारा ही संचालित किया जाता है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के अंतर्गत सरकार के द्वारा या सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने को लेकर एक विशेष प्रक्रिया निर्धारित की गयी है, जिसके अनुसार सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने की प्रक्रिया का प्रावधान है।
आप में से ही ऐसे कई लोग होंगे जिनको सरकारी कर्मचारियों, अधिकारीयों या लोकपाधिकारी के द्वारा सरकार की हैसियत से किये गए किसी कार्य से क्षति हुई हो, तो आप उस कर्मचारी, अधिकारी, लोकपाधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर अनुतोष प्राप्त कर सकते है।
सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की प्रक्रिया क्या है ?
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 79 - सरकार के द्वारा या सरकार के खिलाफ मुकदमा। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 79 के तहत एक सरकार के द्वारा तथा उस सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने के लिए वादी और प्रतिवादी के रूप में नामित किये जाने वाले अधिकार होंगे जैसा मामला हो :-
- केंद्रीय सरकार के द्वारा या उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने की दशा में, मुकदमा भारत संघ के नाम से लाया जायेगा,
- किसी राज्य सरकार के द्वारा या उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने की दशा में, राज्य सरकार के नाम से लाया जायेगा।
सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से पहले सूचना देकर सूचित करना होगा ।
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80 - सूचना। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80 अनुसार सरकार से अभिप्राय केंद्रीय सरकार और राज्य सरकार से है, जिसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर की सरकार भी आती है ,या इन सरकारों के किसी लोक अधिकारी के द्वारा अपने पद की हैसियत से किये गए किसी ऐसे कार्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से पहले वादी को तत्तसम्बन्धी सूचना उस विभाग के लोक अधिकारी को लिखित में देनी होगी। इस सूचना में निम्न बातों का उल्लेख किया जाना आवश्यक है जैसे कि:-
- वाद हेतुक/ कार्यवाही का कारण (cause of action)
- वादी का नाम।
- निवास स्थान।
- अनुसतोष जो वह प्राप्त करना चाह रहा है।
यह सब इस प्रकार से उल्लिखित किया जाना चाहिए ताकि उपर्युक्त प्राधिकारी या लोक अधिकारी को सूचना देने वाले व्यक्ति की अच्छे से पहचान हो सके और ऐसी सूचना उपर्युक्त प्राधिकारी या लोक अधिकारी के कार्यालय में दी गयी है।
सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने के से पहले दी जाने वाली सूचना / नोटिस किसपर तामील की जाएगी।
सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से पहले उस विभाग को तथ्य सम्बन्धी सूचना लिखित में दी जानी होगी, यह सूचना निम्नलिखित पर तामील की जाएगी :-
- केंद्रीय सरकार के खिलाफ मिकदमा दर्ज किये जाने की दशा में, रेलवे विभाग से सम्बन्घित मामले को छोड़ कर सरकार के सचिव के नाम से यह नोटिस दी जाएगी।
- केंद्रीय सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने की दशा में, जहाँ मामला रेलवे से सम्बंधित है. उस रेलवे के महाप्रबंधक के नाम से यह नोटिस दी जाएगी।
- जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने की दशा में. उस सर्कार के मुख्य सचिव को या उस सरकार की ओर से प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी के नाम से नोटिस दी जाएगी।
- किसी अन्य राज्य सरकार मुकदमा दर्ज जाने की दशा में, उस सरकार के सचिव के नाम से या उस जिले के कलेक्टर के नाम से नोटिस दी जाएगी।
लोकपदाधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से पहले नोटिस दी जाने की प्रक्रिया।
यदि किसी लोक-पदाधिकारी के द्वारा किये गए कार्य के खिलाफ खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने की दशा में, तथ्य-सम्बन्धी लिखित नोटिस उस लोक-पदाधिकारी को दी जाएगी या उसके कार्यालय में छोड़ दी जाएगी। इस नोटिस में वाद दर्ज करने वाले व्यक्ति को, वाद दर्ज करने के कारण को स्पष्ट रूप से लिखना होगा, वादी को अपना सम्पूर्ण नाम तथा निवास स्थान स्पष्ट रूप से लिखना होगा और वह उस अनुतोष को भी लिखेगा जिसका वादी दावा कर रहा है।
नोटिस दिए जाने के कितने दिन बाद मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।
सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किये जाने के लिए सबसे पहले उस विभाग को एक लिखित नोटिस देनी होती है। इस नोटिस के जरिये सरकार को उसके विभाग द्वारा किये गए कार्य सम्बन्धी तथ्यों से सूचित कराना होता है। जिसमे सरकार को दो महीने की अवधि मिलती है की वह मामले का निपटारा कर वादी के द्वारा मांगे गए अनुतोष को स्वयं प्रदान कर देती है, यदि सरकार स्वयं इस मामले का निपटारा करने में असमर्थ होती है, तो वादी सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर अनुतोष प्राप्त कर सकता है, लेकिन मुकदमा दर्ज करने के लिए वाद पत्र दाखिल करते समय वादी को वादपत्र में इस बात का उल्लेख करना जरुरी होगा कि वादी ने सरकार को अधिनियम की धारा 80 के तहत नोटिस दिया है और इस नोटिस की तमिल उचित रूप से हो चुकी है।
दो महीने की नोटिस की अवधि समाप्त हो जाने के बाद ही क्यों मुकदमा दर्ज किया जायेगा।
- जैसा की अधिनियम की धारा 80 के तहत सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने लिए लिए पहले एक लिखित नोटिस दी जाएगी जिसमे सरकार को उसके अधिकारियो के द्वारा अपने सरकारी पद की हैसियत से किये गए कार्य से अवगत कराना होता है। दो महीने की नोटिस दिए जाने का मुख्य कारण यह है कि सरकार को अपने कार्यालय में किसी कार्य का सही पता लगाने के लिए कुछ समय लगता है। यदि यह दो महीने की उचित अवधि दिए बिना अचानक सरकार के कार्य के खिलाफ मुकदमा चलाया जाता है, तो यह न्याय के खिलाफ होगा।
- नोटिस मिलने के बाद इन दो महीने की अवधि में सरकार, अपने अधिकारियो के द्वारा अपने सरकारी पद की हैसियत से किये गए कार्यो की कार्यवाही कर संतुष्ट हो जाने पर वादी या पक्षकार के द्वारा मांगे गए अनुतोष को सरकार स्वयं प्रदान कर देती है, जिसकी वजह से सरकार के खिलाफ मुकदमा लड़ने से राहत मिलती है।
मुकदमा दर्ज करने से पहले सरकार को नोटिस देने के लाभ क्या हो सकते है।
- नोटिस मिलने के बाद सरकार स्वयं वादी और पक्षकारों के द्वारा मांगे गए अनुतोष को स्वयं प्रदान कर देती है।
- इसे वादी को सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं करना पड़ता।
- इससे वादी और सरकार दोनों को लाभ होता है।
- वादी और सरकार दोनों के समय की बचत होती है।
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