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नमस्कार दोस्तों,
आज के इस लेख में आप सभी को को सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायालय का क्षत्राधिकार के बारे में बताने जा रहा हु। अगर आप अधिवक्ता, विधि के छात्र या न्यायिक परीक्षा की तैयारी कर रहे है , तो ऐसे में आपको न्यायालय का क्षेत्राधिकार के बारे में आवश्य जानना चाहिए।
न्यायालय का क्षेत्राधिकार से क्या मतलब है ?
न्यायालय का क्षेत्राधिकार से मतलब सक्षम न्यायालय की उस शक्ति से है जिसके तहत न्यायालय अपने क्षेत्राधिकारिता के अंतर्गत किसी वाद, अपील या आवेदन पत्र को स्वीकार कर न्यायिक कार्यवाही पूर्ण कर पक्षकारों की सुनवाई के बाद उस वाद, अपील या आवेदन पत्र पर अपना न्यायिक निर्णय दे सकता है।
न्यायालय का क्षेत्राधिकार कितने प्रकार के होते है ?
किसी न्यायालय की अधिकारिता को निश्चित करने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत कुछ अधिकारिताएं बताई गयी है क्योकि न्यायालय में किसी वाद को दर्ज करने से पहले निश्चित कर लेना चाहिए की क्या उस न्यायालय में ये सभी अधिकारितायें, वाद के संदर्भ में निहित है या नहीं ?
- स्थानीय अधिकारिता।
- धन सम्बन्धी अधिकारिता।
- विषय वस्तु सम्बन्धी अधिकारिता।
- प्रारम्भिक एवं अपीलीय अधिकारिता।
किसी न्यायालय को सक्षम न्यायालय तभी कहा जायेगा जब ये अधिकारिताएं उसमे निहित होंगी यदि ऐसी अधिकारिताओं से न्यायालय युक्त नहीं है, तो वह न्यायालय सक्षम न्यायालय नहीं कहा जायेगा।
इन सभी अधिकारिताओं को हम विस्तार से समझने का प्रयास करते है।
न्यायालय के क्षेत्राधिकार के विभिन्न प्रकार।
1. स्थानीय क्षेत्राधिकार। न्यायालय की स्थानीय क्षेत्राधिकार सीमा सरकार के द्वारा निर्धारित की जाती है जिसके अंतर्गत न्यायालय उस क्षेत्राधिकार सीमा के भीतर रहकर अपनी शक्ति का प्रयोग करता है जैसे :-
- जिला न्यायालय को जिले की सीमा के अंतर्गत ही क्षेत्राधिकार प्राप्त होता है, जिले की सीमा के भीतर ही वह अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर सकती है न कि जिले से बाहर वह अपने अधिकारों का प्रयोग करेगी।
- उच्च न्यायालय को राज्य विशेष की सीमाओं के अंतर्गत क्षेत्राधिकार प्राप्त होता है, राज्य विशेष की सीमाओं के भीतर रहकर ही अपने क्षेत्राधिकार का उपयोग करेगी।
- उच्चतम न्यायालय पुरे देश में अपने अधिकार का प्रयोग कर सकता है और उस वाद की सुनवाई पर अपना निर्णय दे सकता है।
- सिविल जज जूनियर डिवीजन का केवल एक विशेष सिमित क्षेत्र के अंतर्गत क्षेत्राधिकार प्राप्त होता है, उसी विशेष सिमित क्षेत्र के भीतर रहकर अपने क्षेत्राधिकारों का प्रयोग करना होता है।
2. धन सम्बन्धी क्षेत्राधिकार। हर एक न्यायालय की धन सम्बन्धी क्षेत्राधिकार की सीमा सरकार द्वारा ही निर्धारित की जाती है जिसके तहत न्यायालय को उसी निर्धारित धन सम्बन्धी सीमा के अंतर्गत ही वाद या अपील को स्वीकार करने का अधिकार प्राप्त करती है। एक बात ध्यान रखने वाली यह है कि धन सम्बन्धी क्षेत्राधिकार की सीमा अलग अलग राज्यों में अलग अलग हो सकती है।
- उत्तर प्रदेश में सिविल जज जूनियर डिवीजन के न्यायलय की धन सम्बन्धी क्षेत्राधिकार की सीमा ऐसे वादों तक सिमित है जिसमे विषय वस्तु का मूल्यांकन 25,0000 रूपये तक है।
- सिविल जज सीनियर डिवीज़न के न्यायालय में धन सम्बन्धी क्षेत्राधिकार की सीमा ऐसे वादों तक सिमित होती है जिसमे वादों के विषय वस्तु का मूल्यांकन 25,0000 रूपये से ऊपर तक है।
- लघुवाद न्ययालय की धन सम्बन्धी क्षेत्राधिकार 5000 रूपये तक नियत है लेकिन किराये और बेदखली के वादों में धन सीमा 25,000 रूपये तक सिमित की गयी है।
3. विषय वस्तु सम्बन्धी क्षेत्राधिकार। हर एक न्यायालय की विषय वस्तु सम्बन्धी क्षेत्राधिकार की सीमा सरकार द्वारा ही निर्धारित की जाती है जिसके अंतर्गत वह उस निश्चित की गयी विषय वस्तु के तहत वादों को स्वीकार करता है। सभी विषय वस्तु सम्बन्धी वादों में विचारण कर अपना निर्णय सुना सकने का यह अधिकार हर एक न्यायालय को प्राप्त नहीं है।
- सिविल सम्बन्धी विवाद,
- पारिवारिक सम्बन्धी विवाद,
- उपभोक्ता सम्बन्धी विवाद,
- औद्योगिक सम्बन्धी विवाद ,
- सहकारी समिति सम्बन्धी विवाद।
4. प्रारम्भिक एवं अपीलीय क्षेत्राधिकार। हर एक न्यायालय की प्रारम्भिक एवं अपीलीय क्षेत्राधिकार की सीमा सरकार द्वारा ही निर्धारित की जाती है उसी सीमा के अंतर्गत वह न्यायालय उस प्रारंभिक कार्यवाही एवं अपीलीय कार्यवाही को स्वीकार करती है।
प्रारंभिक सिविल क्षेत्राधिकार से मतलब न्यायालय के उस अधिकार से है जिसके अंतर्गत किसी भी सिविल वाद या प्रार्थना पत्र या अन्य न्यायिक कार्यवाही को प्रथमतः स्वीकार कर विचारण कर अपना निर्णय सुना कर उस वाद का निपटारा करना होता है जैसे:-
- वसीयत,
- विवाह विच्छेद / तालक,
- विवाह विधि सम्बन्धी मामले,
- कंपनी विधि सम्बन्धी मामले ,
- न्यायालय की अवमानना सम्बन्धी मामले।
अपीलीय क्षेत्राधिकार से मतलब न्यायलय के उस अधिकार से है जिसके अंतर्गत वह किसी अधीनस्थ न्यायालय के द्वारा दिए गए सिवल निर्णय के खिलाफ किये गए अपील या आपत्ति को स्वीकार कर उस वाद का निपटारा करना होता है।
- कुछ न्यायालय को केवल प्रारंभिक सिविल अधिकारिता प्राप्त है, जैसे लघुवाद न्यायालय या मुंसिफ का न्यायालय।
- कुछ न्यायलय को प्रारंभिक और अपीलीय अधिकारिता दोनों प्राप्त होती है जैसे सिविल जज, जिला जज, और उच्च न्यायालयों को दोनों प्रकार की अधिकारिताएं प्राप्त है।
उच्च न्यायालय एक अपीलीय क्षेत्राधिकार का न्यायालय है जिसमे किसी अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील की जा सकती है, लेकिन संसद और विधान सभा चुनाव सम्बन्धी मामलो की सुनवाई के लिए उसे प्रारंभिक अधिकारिता भी प्राप्त है।
Civil suit file krte time sbse pehle kon sa jurisdiction dekha jata h.... Lterritorial ya pecuniary ya subject metter
ReplyDeleteसिवल वाद दायर करते समय आपको विवादित सम्पत्ति की स्थानीय क्षेत्राधिकारिता को देखना होता है ।
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