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कैसे निर्धन व्यक्ति सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत वाद न्यायालय में दर्ज करा सकता है ? how can a poor person file a lawsuit under the code of civil procedure

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नमस्कार दोस्तों,
आज के इस लेख में आप सभी को सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 33 के बारे में बताने जा रहा हु जिसमे निर्धन/गरीब व्यक्ति द्वारा मुकदमा/वाद दर्ज करने के बारे में प्रावधान किया गया है। गरीब व्यक्ति वह है,जो अपना और अपने परिवार का भरण पोषण खेती, मजदूरी, या अन्य कार्य करके कर रहा है और ऐसे में यदि उसकी खेती पर कोई और कब्ज़ा कर ले, तो ऐसे में उस गरीब व्यक्ति को दीवानी न्यायालय में मुकदमा/वाद दर्ज करवाना होगा ताकि वह अपनी संपत्ति वापस प् सके, जिसके लिए उस पीड़ित व्यक्ति को वाद की विषय वस्तु या सम्पत्ति के संबन्ध में वाद या वाद पत्र के लिए विधि द्वारा निर्धारित शुल्क देना होगा। अब सवाल यह उठता है कि एक गरीब व्यक्ति जो खेती, मजदूरी करता है उसके पास इतना पर्याप्त धन नहीं है की वह वाद या वाद पत्र के लिए निर्धारित शुल्क दे सके। 
कैसे निर्धन व्यक्ति सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायालय वाद में दर्ज करा सकता है ? how can a poor person file a lawsuit under the code of civil procedure.

तो, ऐसे निर्धन/गरीबो व्यक्तियों के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 33 में कुछ प्रतिबंधों के साथ वाद दर्ज करने के अधिकार का प्रावधान किया गया है ताकि किसी भी निर्धन/गरीब व्यक्ति को वाद या वादपत्र के लिए निर्धारित शुल्क न दे पाने के कारण न्याय पाने से वंचित होना पड़े। 

निर्धन / गरीब व्यक्ति कौन कहा जायेगा ?
सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 33 के तहत एक निर्धन/गरीब व्यक्ति वह व्यक्ति कहा जायेगा जो कि :-
  1. निर्धन व्यक्ति वह है जिसके पास इतना पर्याप्त धन या साधन नहीं है कि वह वाद या वाद पत्र के लिए विधि द्वारा निर्धारित शुल्क देने में असंमर्थ है।  (डिक्री के निष्पादन में कुर्की से छूट प्राप्त संप्पत्ति से और वाद की विषय वस्तु से भिन्न)
  2. गरीब व्यक्ति वह है जहाँ ऐसी कोई फीस निर्धारित नहीं है वहां जब वह एक हज़ार रूपये के मूल्य की ऐसी संपत्ति का हक़दार नहीं है। (जो डिक्री के निष्पादन में कुर्की से छूट प्राप्त संपत्ति से और वाद की विषय वस्तु से अलग है )
एक व्यक्ति निर्धन है या नहीं इस बात को निर्धारित करने के लिए न्यायालय ऐसी संपत्ति को ध्यान में रखेगा जो उस व्यक्ति ने निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद दाखिल करने की अनुमति प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत करने के बाद या आवेदन पर निर्णय होने से पहले अर्जित किया है।

कौन व्यक्ति निर्धन है या नहीं उसके साधनों की जाँच कौन करता है। 
कोई व्यक्ति निर्धन है या नहीं इसकी जाँच प्रथमदृष्ट्या न्यायालय के मुख्य लिपिकवर्गीय अधिकारी द्वारा की जाएगी लेकिन न्यायालय ऐसी जाँच करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति से कराने का निर्देश दे सकती है। न्यायालय  को यह पूर्ण अधिकार है कि ऐसे अधिकारी की रिपोर्ट को अपने निष्कर्ष के रूप में स्वीकार करे या इस प्रश्न  स्वयं करे।

निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद दर्ज करने के हेतु आवेदन पत्र दाखिल करने लिए आवेदन पत्र की विषय वस्तु। 
जब कोई निर्धन व्यक्ति जिसके पास इतना पर्याप्त धन नहीं है कि वह वाद या वादपत्र के लिए विधि द्वारा निर्धारित शुल्क को न सके, तो ऐसे में उसे न्याय से वंचित न होना पड़े इसके लिए सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 33 में निर्धन व्यक्ति द्वारा वाद दाखिल करने का प्रावधान किया गया है जिसके लिए निर्धन व्यक्ति को निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद लाने के लिए न्यायालय में दाखिल किये जाने वाले आवेदन पत्र में निम्न विवरण आवश्यक रूप से लिखिने होंगे जैसे :-
  1. वादी के सम्बन्ध में आवश्यक विवरण,
  2. किसी चल या अचल संपत्ति का विवरण,
  3. संपत्ति का अनुमानित मूल्य।
यह आवेदनं पत्र उसी रीती से हस्ताक्षरित और सत्यापित होंगे जैसे अभिवचनों के लिए हस्ताक्षर और सत्यापन के लिए निर्धारित किया गया है। 

आवेदन का प्रस्तुत किया जाना। 
आवेदन के पूर्ण रूप से तैयार हो जाने के बाद इस आवेदन को खुद आवेदक के द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किया जायेगा 
 निर्धन व्यक्ति जो कि वादी है, यदि उसे न्यायालय सदन में उपस्थित होने से छूट दे दी गयी है, तो ऐसा आवेदन अधिकृत अभिकर्ता द्वारा उपस्थित किया जा सकेगा  जिसको उस आवेदन से सम्बंधित सभी सारवान  सवालो के जवाब दे सकता हो और उसकी उसी तरह से परीक्षा की जा  सकेगी जैसे उस पक्षकार की जाती जिसका प्रतिनिधित्व वह अभिकर्ता कर रहा है, यदि वह पक्षकार स्वयं उपस्थित हुआ होता।

जहाँ एक से अधिक वादी है वहाँ आवेदन कौन प्रस्तुत कर सकता है ?
यह पर्याप्त है कि जहाँ एक से अधिक वादी है वहाँ पर निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद दाखिल करने के लिए दिए जाने वाले आवेदन को उन वादियों में से किसी एक वादी द्वारा यह आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है। 

न्यायालय किन परिस्थितियों में आवेदन को नामंजूर कर सकती है। 
न्यायालय निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद करने के लिए आवेदन पत्र को निम्न परिस्थितियों में निरस्त या नामंजूर कर सकता है ;-
  1. यदि आवेदन पत्र में आवेदन की विषय वस्तु का विवरण को स्पष्ट रूप से न किया गया हो,
  2. आवेदन पत्र को निर्धारित रूप से प्रस्तुत न किया गया हो,
  3. यदि जाँच के समय यह पाया जाता है कि निर्धन व्यक्ति के रूप में आवेदन करने वाला व्यक्ति निर्धन व्यक्ति नहीं है,
  4. जहाँ व्यक्ति  ने आवेदन प्रस्तुत करने से ठीक पहले दो महीनो के भीतर कपटपूर्वक या अपने को निर्धन व्यक्ति के रूप में सक्षम बनाने लिए किसी संपत्ति का त्याग कर दिया है,
  5. यदि आवेदन पत्र म वाद हेतु प्रदर्शित नहीं किया गया है ,
  6. जहाँ उसने प्रस्थापित वाद की वीसी वस्तु के बारे ऐसा करार किया है जिसके अधीन किसिस अन्य व्यक्ति ने ऐसी विषय वस्तु में हिट प्राप्त कर लिया है,
  7. जहाँ आवेदन पत्र में आवदेक द्वारा किये गए अभिकथनों से यह मालूम होता है की वाद ततस्मय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा वर्जित है,
  8. यदि आवेदक ने अन्य किसी मुकदमेबाजी के पोषण का करार किया  है। 
आवेदन पत्र ग्रहण करने की प्रक्रिया के बाद अधिवक्ता की नियुक्ति। 
  1. निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद लाने के लिए आवेदन करने के बाद न्यायालय निर्धनता को साबित करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने हेतु कोई एक दिन निर्धारित करेगी जिसके दस दिन पहले विपक्ष को या सरकारी वकील को सूचना देनी होगी,
  2. न्यायालय द्वारा निर्धारित किये गए दिन या किसी उसके बाद की तिथि जो सुविधापूर्वक हो न्यायालय पक्षकारो द्वारा प्रस्तुत किये गए साक्षियों से सवाल पूछेगी,
  3. न्यायालय आवेदक या उसके प्रतिनिधि से भी यह सवाल पूछ सकता है,
  4. न्यायालय पक्षकारो के तर्कों को भी सुनेगा,
  5. न्यायालय पूछे गए सवालों के आधार पर एक दस्तावेज़ तैयार करेगा,
  6. यदि आवेदन पत्र को स्वीकार कर लिया जाता है तो आवेदन को पंजीकृत किया जायेगा और आवेदन पत्र को ही वाद पत्र समझा जायेगा,
  7. इसके बाद वादी को अधिवक्ता की नियुक्ति के लिए या वाद के सम्बन्ध में किसी प्रकार का शुक्ल देने का दायित्वाधीन नहीं होगा,
  8. निर्धन व्यक्ति के प्रतिनिधित्व न होने पर न्यायालय द्वारा अधिवक्ता नियुक्त किया जायेगा। 
कब निर्धन व्यक्ति का आवेदन स्वीकृत होने के बाद भी अयोग्य घोषित किया जा सकता है। 
प्रतिवादी या सरकारी अधिवक्ता के आवेदन पर न्यायालय सकेगा कि वादी को निर्धन व्यक्ति के रूप म वाद लेन के लिए दी गयी  आज्ञा निम्नलिखित दशाओं में निरस्त किया जा सकेगा लेकिन इसकी सूचना वादी को लिखित में  सात दिन पहले दे दी गयी हो:-
  1. यदि वादी वाद के दौरान तंग करने वाले या अनुचित आचरण का दोषी है,
  2. यदि यह मालूम होता है कि वादी के साधन ऐसे है कि निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद दाखिल करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी,
  3. यदि वादी ने वाद की विषय वस्तु के बारे में कोई करार किया हो जिसमे किसी अन्य व्यक्ति ने उस विषय वस्तु में कोई हित प्राप्त कर लिया है। 
निर्धन व्यक्ति के पक्ष में न्यायालय द्वारा निर्णय दिए जाने पर फीस की वसूली के बारे में। 
अगर न्यायालय द्वारा निर्णय निर्धन व्यक्ति के पक्ष में किया जाता है तो न्यायलय शुल्क की गणना उसी प्रकार से की जाएगी जैसे कि वह निर्धन व्यक्ति नहीं है।
ऐसी फीस राज्यसरकार द्वारा प्रतिवादी से वसूल की जाएगी जो उसे भुगतान करने के लिए डिक्री के इजराये प्रक्रिया में प्रतिवादी को न्याय शुल्क अदा करने हेतु बाध्य किया जायेगा। 

5 comments:

  1. अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान सिस्टम में लागू होने पर तत्काल नियुक्ति देने के बजाए विभाग एवं प्रशासन द्वारा नियुक्ति को विलंबित क्यो किया जाता है जबकि परिवार- 1.आर्थिक तंगी व बदहाली से गुजर-बसर रहा है। 2.भर्ती नियमों के उपबन्धों के अंतर्गत संबंधित पद के लिए पात्र एवं उपर्युक्त है।

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  2. सिविल कोर्ट में दोनों बहनों द्वारा हक त्याग (ई रजिस्ट्री) उपरान्त धोखाधड़ी देने का केस दर्ज आवेदन धारा 35 न्याय शुल्क अधिनियम द्वारा किया गया हैं जबकि कोर्ट फीस भरने के लिये कोर्ट पहले ही एक साल से कह रही थी पर फिर फीस में छूट दे केस पंजीकृत किया गया पर बहने सक्षम है कोर्ट ने BPLकार्ड के कारण फीस में छूट दी है यह कोर्ट फीस में छूट कैसे वापस होगी । BPL कार्ड फर्जी साबित होने पर कितने प्रतिशत से वादीगण को कोर्ट फीस भरनी पड़ेगी । हक त्याग विलेख पूर्णत: विधि संगत है व तहसील कोर्ट द्वारा भी 6 माह विवादित नामात्रण हक त्याग सही पाये जाने पर हम दोनों भाईयों के पक्ष में रहा व अभी खेती की बही नहीं बनी है आगे कोर्ट में केस कितना समय लगेगा । विधिसंगत हक त्याग होने पर भी पिछले एक साल से कभी तहसील तो कभी SDM कोर्ट में परेशान हुए ओर अब सिविल कोर्ट में कृपा उचित मार्गदर्शन करें आपके द्वारा दी गई महत्वपूर्ण सलाह हमे विधि अनुसार कार्य करने में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं । धन्यवाद

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    1. कोर्ट फीस की गणना संपत्ति के मूल्यांकन पर होती है । मूल्यांकन के अनुसार ही कोर्ट फीस लगती है । यह साबित करने का भार आप पर है कि पक्षकार निर्धन व्यक्ति नहीं है । साबित हो जाने पर कोर्ट फीस देनी होगी ।
      अब बात रही कोर्ट केस मे कितना समय लगता है, इस सवाल का कोई सटीक जवाब नहीं है । यह निर्भर करता है न्यायिक कार्यवाही मे कि कितना समय लगे ।

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    2. रिप्लाई के लिये आपका कोटि कोटि आभार सर 🙏

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    3. धन्यवाद आपको भी ।

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