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कब एक बैंकिंग कंपनी का अस्तित्व समाप्त हो जाता है ? Winding-up of banking company ?

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नमस्कार दोस्तों,
आज के इस लेख में आप अभी को बैंकिंग लॉ के बारे में बताने जा रहा है कि कब एक बैंकिंग कंपनी का अस्तित्व समाप्त हो जाता  है ? किसी भी कंपनी के विधिक अस्तित्व को समाप्त करने की प्रक्रिया परिसमापन (winding) होती है।  कंपनी के परिसमापन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए एक परिसमापक को नियुक्त किया जाता है जो कंपनी के मामलो का पूर्ण नियंत्रण अपने हाथ में लेता है और कार्य को पूरा करता है। कंपनी की हर एक संपत्तियो की वसूली व् जब्त कर, इसका कंपनी के  हर एक दायित्वों और ऋणो में उपायोजन करना होता है। 

तो, चलिए बैंकिंग परिसमापन के बारे  बात करते है। 

एक बैंक कब दिवालिया घोषित होती है ? Winding-up of banking company ?
बैंकिंग कंपनी के परिसमापन की प्रक्रिया। 
बैंकिंग कंपनी के परिसमापन की प्रक्रिया बताई गयी है जो की इस प्रकार से है -
  1.  उच्च न्यायालय द्वारा।  
  2. बैंकिंग कंपनीयो  द्वारा दायित्वों का भुगतान करने में असमर्थता की शर्ते। 
  3. जमाकर्ताओं के हितो के प्रतिकूल कार्य करने पर रिज़र्व बैंक द्वारा परिसमापन के लिए आवेदन किया जाना। 
  4. स्वैच्छिक समापन 
  5. न्यायालय के संरक्षण में समापन। 
ऊपर बताई गयी सभी प्रक्रिया के बारे में आपको विस्तार से बताने जा रहा हु जिससे आप सभी बैंकिंग परिसमापन की प्रक्रिया को समझने में आसानी होगी।  

1. उच्च न्यायालय द्वारा बैंक का परिसमापन। 
बैंकिंग विनियम अधिनियम की धारा 38 के तहत, एक बैंकिंग कंपनी का परिसमापन उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश पर उन दशा में होता है जब :-
जब बैंकिंग कंपनी अपने ऋणो को चुकाने में असमर्थ हो जाती है इन दशाओं में उच्च न्यायालय बैंकिंग के परिसमापन का आदेश देकर कर बैंक के विधिक अस्तित्व को समाप्त कर देती है। 

2. बैंकिंग कम्पनियो द्वारा दायित्वों का भुगतान करने में असमर्थता की शर्ते। 
जब बैंकिंग कंपनी अपने दायित्वों का भुगतान करने में असर्मथ हो जाती है, तो उनके परिसमापन का समय नजदीक  आ जाता है। एक बैंकिंग बैंकिंग कंपनी अपने दयित्वो का भुगतान  करने में असमर्थ कब होती है इसके विषय में सिद्धांत अधिनियम 2013 की धारा 177 में प्रावधान  दिया गया है।  इसके तहत कंपनी अधिनियम 2013 की धरा 271 में दिए गए प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना एक बैंकिंग कंपनी अपने दायित्व का भुगतान करने असमर्थ मानी जाएगी :-
  1. यदि बैंक ने अपने किसी कार्यालय या शाखाओ पर 2  कार्यदिवसों में किये गए विधिमान्य माँगो को पूरा करने से मना कर दिया है और ऐसी विधिमान्य माँगे उस स्थान पर की गयी है जहाँ रिज़र्व बैंक का कार्यालय या शाखा अभिकरण स्थित है। 
  2. यदि बैंक अपने किसी कार्यालय या शाखा पर 5  करदिवसो में की गयी विधिमान्य माँगो को पूर्ण करने से मना करता है  और यदि ऐसी मांगे उस जगह की गयी है जहाँ रिज़र्व बैंक का कार्यालय , शाखा अभिकरण स्तिथ नहीं है। 
  3. यदि रिज़र्व बैंक द्वारा लिखित रूप से यह प्रमाणित कर दिया जाये कि बैंकिंग कंपनी अपने दायित्वों का भुगतान करने में असर्मथ है। 
  4. यदि किसी लेनदार जिसका 5000 रूपये से अधिक की धनराशि कंपनी के खिलाफ देय है और मांगे जाने पर 3 सप्ताह के भीतर भुगतान करने में या लेनदारो को संतुष्ट करने में असर्मथ है। 
  5. जहँ न्यायालय को यह समाधान हो जाये कि कंपनी अपने दयित्वो का भुगतान करने में असमर्थ है।  
3. जमाकर्ताओं के हितो के प्रतिकूल कार्य करने पर। 
बैंकिंग विनियम अधिनियम की धारा 37 (4) के तहत यदि रिज़र्व बैंक को यह समाधान हो जाता है कि किसी बैंकिंग कंपनी के मामलो का संचालन जमाकर्ताओं के हितों के प्रतिकूल किया जा रहा है, तो 
  1. अधिनियां की धारा 11 के तहत बैंकिंग कंपनी  न्यूनतम संदत्त पूंजी और अारक्षिती की अपेक्षाओं को पूर्ण करने असमर्थ रही है। 
  2. अधिनियम की धारा 11 से परे अन्य किसी अपेक्षाओं को पूर्ण करने में बैंकिंग कंपनी असमर्थ रही हो। 
  3. अधिनियम की धारा  22 तहत अनुज्ञप्ति के आभाव में कोई बैंकिंग कंपनी बैंकिंग कारोबार करने के हक़दार नहीं रह गयी हो। 
  4. अधिनियां की धारा  38 (3) (क) के तहत रिज़र्व बैंक किसी बैंकिंग कंपनी के परिसमापन के लिए इसी धारा के तहत आवेदन करेगा। 
  5. अधिनियम की धारा 38 (3)(ख) के तहत रिज़र्व बैंक के मत में :-
  • अधिनियम के अधीन भेजे गए विवरणरीय विवरण  सूचनाओ में यह स्पष्ट लिखित है कि बैंकिंग कंपनी अपने दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ है। 
  • जहाँ किसी बैंकिंग कंपनी का बना रहना जमाकर्ताओं के प्रतिकूल है। 
अधिनियम की धारा 35 (4) के तहत रिज़र्व बैंक के द्वारा किसी बैंकिंग कंपनी के परिसमापन के लिए आवेदन किया जा सकेगा :-
यदि केंद्रीय सरकार द्वारा निर्देशित किया गया है। 
केंद्रीय सरकार बैंकिंग कंपनी का परिसमापन करने के लिए संतुष्ट है। 
यदि बैंकिंग कंपनी द्वारा बैंकिंग विनियम अधिनियम के  उल्लंघन किया जाता है। 

4. स्वैछिक समापन-
बैंकिंग विनियम अधिनियम की धारा 44 के तहत एक बैंकिंग कंपनी का स्वेछिक समापन किया जा सकता है जब रिज़र्व बैंक के द्वारा यह लिखित रूप में प्रमणित किया जाता है कि बैंकिंग कंपनी अपने लेनदारों के दयित्वो और ऋणो को पूर्ण करने में असर्मथ है। किसी भी बैंकिंग कंपनी का स्वेछिक परिसमापन केवल रिज़र्व बैंक द्वारा लिखित रूप से प्रमाणित करने पर किया जायेगा। 

5. न्यायालय के संरक्षण में बैंकिंग कंपनी का समापन - 
बैंकिंग विनियम अधिनियम की  धारा 44(2) के तहत, जब किसी बैंकिंग कंपनी का परिसमापन स्वैछिक रूप से किया गया है , तो उच्च न्यायलय यह आदेश कर सकेगा की ऐसा परिसमापन न्यायालय के संरक्षण में किया जायेगा। 

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