लैँगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनयम 2012 पोक्सो एक्ट2012-Protection of Children From Sexual Offence Act 2012
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नमस्कार दोस्तों,
आज के इस पोस्ट में आप सभी को " लैँगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनयम, 2012" जिसको "पोक्सो एक्ट,2012 " के नाम से भी जाना जाता है, इस अधिनिययम के बारे में बताने जा रहा हु।
यह अधिनियम 2012 में पारित हुआ ताकि लैँगीक उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के अपराधों से बालको को संरक्षित किया जाये और ऐसे अपराधों का विचारण करने के लिए एक विशेष न्यायालय की स्थापना की गयी।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (3) में यह साफ लिखा है कि राज्य सरकार बालको और महिलाओ के लिए विशेष उपबंध करने के लिए सशक्त है।
चलिए जानते है इस अधिनयम की कुछ विशेष धाराओं के बारे में :-
अधिनयम की धारा 3 :- प्रवेशन लैंगिक हमला क्या है ?
- यदि कोई भी व्यक्ति अपना लिंग या वस्तु किसी बालक की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग, या गुदा में या शरीर के किसी भी ऐसे भाग में जो की लिंग नहीं है किसी भी सिमा तक प्रवेश करता है या बालकसे उसके साथ या किसी दूसरे व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है, तो यह प्रवेशन लैंगिक हमला कहा जायेगा जो की अपराध है।
- यदि कोई भी व्यक्ति बालक के योनि, गुदा, मूत्रमार्ग या लिंग पर अपना मुँह लगाता है या ऐसे व्यक्ति या किसी दूसरे व्यक्ति साथ बालक से ऐसा करवाता है , तो यह भी प्रवेशन लैंगिक हमला कहा जायेगा।
अधिनियम की धारा 4 :- इस अपराध के दंड का प्रावधान।
अधिनियम की धारा 4 लैंगिक हमले के लिए दंड का प्रावधान करती है। यदि कोई भी व्यक्ति प्रवेशन लैंगिक हमला करेगा, तो उस व्यक्ति को दण्डित किया जायेगा जो कि सात साल की अवधि तक कारावास या आजीवन कारावास की सजा से दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डित किया जायेगा।
अधिनियम की धारा 19 :- लैंगिक मामले की रिपोर्ट कैसे करनी है।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किसी बात के होते हुए भी कोई भी व्यक्ति जिसके अंतर्गत बालक या जिसको इस बात की आशंका है कि पोक्सो अधिनियम के अधीन कोई अपराध किये जाने की संभावना है या लैंगिक अपराध किया गया है ऐसी भी जानकारी रखता है ,तो वह वयक्ति इस अपराध की जानकारी "विशेष किशोर पुलिस यूनिट या अपने स्थानीय पुलिस थाने में इस अपराध की जानकारी दे सकता है।
अधिनियम की धारा 24 :- बालको के कथनों को लिखिने की प्रक्रिया।
अधिनियम की धारा 19 :- लैंगिक मामले की रिपोर्ट कैसे करनी है।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किसी बात के होते हुए भी कोई भी व्यक्ति जिसके अंतर्गत बालक या जिसको इस बात की आशंका है कि पोक्सो अधिनियम के अधीन कोई अपराध किये जाने की संभावना है या लैंगिक अपराध किया गया है ऐसी भी जानकारी रखता है ,तो वह वयक्ति इस अपराध की जानकारी "विशेष किशोर पुलिस यूनिट या अपने स्थानीय पुलिस थाने में इस अपराध की जानकारी दे सकता है।
- लैंगिक अपराध की घटना की जानकारी देने पर उस जानकारी को लिखा जायेगा और प्रत्येक रिपोर्ट में एक प्रविष्टि संख्या अंकित की जाएगी। सूचना देने वाले व्यक्ति को लिखी गयी घंटना को पढ़ कर सुनाया जायेगा और पुलिस यूनिट द्वारा रखी जाने वाली पुस्तिका में दर्ज की जाएगी।
- जहॉ लैंगिक अपराध की सूचना किसी बालक के द्वारा दी जा रही है, ऐसी रिपोर्ट को सरल भाषा में लिखा जायेगा जिससे रिपोर्ट में लिखी गयी सूचना को वह बालक समझ सके।
- यदि रिपोर्ट में लिखी गयी भाषा को बालक नहीं समझ पा रहा है, तो अनुभवी अनुवादक को बुलाकर,,वह रिपोर्ट बालक के सामने उस भाषा में उस रिपोर्ट का अनुवाद होगा जो भाषा बालक समझ सके। अनुवादक को ऐसी फीस का भुगतान किया जायेगा जो की निर्धारित की जा सकेगी।
- विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस को इस बात का समाधान हो जाता है की पीड़ित बालक की देख रेख और उसके संरक्षण की आवश्य्कता है,तब रिपोर्ट के 24 घण्टे के भीतर कारणों को लिखने के पश्चात पीड़ित बालक को निर्देशानुसार ऐसी देख रेख जिसके तहत संरक्षण गृह या नजदीकी चिकित्सालय में भर्ती कराये जाने की तुरंत व्यवस्था की जाएगी।
- विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस अनावश्यक देरी किये बिना 24 घंटे की भीतर लैंगिक अपराध के मामले को बालक कल्याण समिति और विशेष न्यायलय या जहा कोई विशेष न्यायालय पदाभिहित नहीं किया गया है वहां पर शेसन न्यायालय को रिपोर्ट करेगा।
अधिनियम की धारा 24 :- बालको के कथनों को लिखिने की प्रक्रिया।
- बालक के कथन को बालक के निवास स्थान, उसके पसंद के स्थान पर व्यावहारिक रूप से उप निरीक्षक की रैंक के अलावा किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा बालक के कथनों को लिखा जायेगा।
- बालक के दकथनो को लिखते समय पुलिस अधिकारी अपनी वर्दी में नहीं होगा।
- जाँच करने वाला पुलिस अधिकारी, बालक की परीक्षा करते समय यह तय करेगा की बालक किसी भी समय अभियुक्त से किसी भी प्रकार से संपर्क में न आए।
- किसी भी बालक को रात के समय किसी भी कारण पुलिस स्टेशन में निरुद्ध नहीं किया जायेगा।
- पुलिस अधिकारी इस बात का भी ध्यान रखेंगे की बालक की पहचान पब्लिक मीडिया तक न पहुंचे , जब तक कि बालक के हित में विशेष न्यायालय द्वारा निर्देशित न किया गया हो।
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