www.lawyerguruji.com
नमस्कार मित्रों,
आज के इस लेख में आप सभी को तलाक के बारे में बताने जा रहा जहाँ " आपसी सहमति से तलाक के लिए 6 महीने का इंतज़ार जरुरी नहीं है।
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 में विवाह विच्छेद यानी तलाक का प्रावधान किया गया है, जिसमे तलाक के आधारों उल्लेख किया गया कि यदि पति पत्नी एक दूसरे से पूर्ण रूप से अलग रहना चाह रहे है तो, धारा 13 के आधारों में से किन्ही आधारों के आधार पर विवाह विच्छेद के लिए सक्षम न्यायालय में विवाह विच्छेद की याचिका दायर कर सकते है।
आपसी सहमति से तलाक के लिए किस धारा में प्रावधान किया गया है ?
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 ख में विवाह विच्छेद के आधारों में आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए प्रावधान किया गया है। जहाँ पति-पत्नी किन्ही कारणों से आपसी सहमति के तलाक लेने की इच्छा रखते है तो वे दोनों आपसी सहमति से न्यायालय लिए याचिका दायर कर सकते है।
विवाह विच्छेद की प्रकिया में न्यायालय द्वारा पति-पत्नी दोनों को 6 महीने का समय दिया जाता है, यह 6 महीने का समय न्यायाधीश द्वारा विवाह विच्छेद की अंतिम डिक्री देने से पहले दिया जाता है। क्योकि न्याय प्रणाली का यह मानना है कि कोई भी दम्पति अलग न हो क्योकि इसका समाज व् उनके बच्चो पर बुरा असर पड़ता है। उच्चतम न्यायालय ने कहाँ कि विवाह विच्छेद के अंतिम निर्णय के लिए 6 महीने का समय लेना सिविल जज के विवेक पर निर्भर होगा। यदि सिविल जज चाहे तो खास परिस्थितियों में विवाह विच्छेद के लिए तुरंत आदेश कर डिक्री दे सकता है।
विवाह विच्छेद यानी तलाक के लिए 6 महीने का समय क्यों दिया जाता है ?
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 ख में प्रावधान दिया गया है कि जब विवाह विच्छेद के लिए सिविल पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर की जाती है तो विवाह विच्छेद के लिए अंतिम आदेश देने से पहले 6 महीने का समय इसलिए दिया जाता है कि ताकि पति पत्नी आपस में अपने झगडे, विवाद को सुलझा ले, या विवाह विच्छेद के इस निर्णय को बदल दे आदि।
किस केस के आधार पर 6 महीने का समय समाप्त किया गया ?
दिल्ली तीस हजारी न्यायालय में पति पत्नी द्वारा विवाह विच्छेद की याचिका दायर की गयी. इस याचिका के मुताबिक पति और पत्नी दोनों लगभग 8 साल से अलग रह रहे थे, आपसी सहमति से लिए जा रहे तलाक में दोनों ने कई चीजों के बारे में आपसी सहमति कर ली थी जैसे कि :-
- बच्चों की कस्टडी,
- गुजारा भत्ता के सम्बन्ध में,
- और भी कई बातो के बारे में इन दोनों के मध्य आपसी सहमति हो गयी थी।
इन सभी आपसी सहमति के बाद भी जज ने दोनों को 6 महीने का समय इंतज़ार के लिए दिया था जो कि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के तहत दिया जाता है।
उच्चतम न्यायालय ने इस 6 महीने के समय को तलाक लेने के इंतज़ार को समाप्त कर दिया साथ ही साथ देश के सभी पारिवारिक न्यायालय को यह आदेश भी दिया कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 ख के तहत 6 महीने का समय जो दिया जाता है उसे आवश्यक न माने। जहाँ जज को यह उचित लगता है कि तलाक का आदेश तुरंत दे वहाँ वह ऐसा आदेश दे सकता है।
किन परिस्थितयों में तलाक की डिक्री का आदेश तुरंत दिया जा सकेगा ?
- हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 ख में तलाक के अंतिम निर्णय इ लिए पति पत्नी दोनों को 6 महीने का समय दिया जाता है और धारा 13 ख की उपधारा 1 के अनुसार विवाह के 1 साल बाद विवाह विच्छेद की याचिका दायर की जा सकती है। यदि यही समय पहले से बीत चूका हो, मतलब जब पति और पत्नी ने आपसी सहमति से तलाक के लिए पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर की है तब से दोनों को लग हुए 1 साल या 6 महीने बीत रहे हो।
- यदि पति पत्नी में सुलह नामा के सारे विकल्प समाप्त हो चुके तो जहाँ सुलह नामा को लेकर आगे भी किसी भी प्रकार की कोई गुंजाईश न हो,
- यदि पति पत्नी में बच्चो की कस्टडी को लेकर समझौता हो गया हो,,
- यदि पति पत्नी के मध्य गुजरे भत्ते को लेकर समझौता हो गया हो,
- यदि पति पत्नी के मध्य तलाक के लिए यह 6 महीने का इंतज़ार परेशानी का कारण बनता हो।
विवाह विच्छेद यानी तलाक के लिए दायर याचिका के 1 हफ्ते बाद पति व् पत्नी इन सभी परिस्थियों का सन्दर्भ देते हुए, तुरंत तलाक की मांग कर सकता है। यदि दोनों की इस तुरंत तलाक की प्रार्थना के बारे में पारिवारिक न्यायालय न्यायाधीश को उचित लगता है तो वह विवाह विच्छेद की याचिका में 6 महीने का इंतज़ार का समय न देते हुए तलाक की डिक्री का आदेश तुरंत दे सकता है।
Highcourt m agreement k bad family court m divorce file kia ab pati divorce nh de rha
ReplyDeleteजब आपने तलाक के लिए कुटुंब न्यायालय मे मुकदमा दायर कर दिया है, तो अब कोर्ट की कार्यवाही व आदेश का इंतज़ार करे ।
ReplyDeleteAger ldka nhi chahe sath rhna to shadi k kitne din bad talk ho sakta h
ReplyDelete