इन्वेस्टीगेशन यानी जाँच क्या होती है और कैसे होती है Investigation kya hoti hai iski puri jankari in Hindi
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नमस्कार मित्रो,
आज के इस लेख में आप सभी को "इन्वेस्टीगेशन यानी जाँच क्या होती है और कैसे होती है " इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाला हु और आपके मन में आ रहे अन्य सवालों के जवाब भी दूंगा जैसे कि :-
- जाँच से क्या मतलब है ?
- जाँच की प्रक्रिया क्या है ?
- जाँच में होता क्या है और क्यों होती है ?
- किसी अपराध में जाँच का महत्त्व क्या है ?
- पुनः जाँच से क्या मतलब है व् कब होती है ?
- जाँच करने में पुलिस अधिकारीयों की शक्ति से क्या मतलब है ?
आपके इन्ही सभी सवालों के जवाब हम विस्तार से व् सरलता से जवाब देंगे।
इन्वेस्टीगेशन यानी जाँच से क्या मतलब है ?
इन्वेस्टीगेशन का से मतलब सरकार द्वारा अधिकृत किये गए किसी ऐसे अधिकारी द्वारा किसी अपराध की या मामले की जाँच कर यह मालूम करना होता है कि उस अपराध या मामले में क्या हुआ था, कैसे हुआ था, कौन कौन शामिल था व् अपराध व् मामले से जुड़े अन्य तथ्यों को खोजना होता है। इन सभी तथ्यों की एक रिपोर्ट बना कर सम्बंधित न्यायालय के समक्ष पेश करना होता है।
जाँच की प्रक्रिया क्या है ?
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत जाँच की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है, जिसके अनुसार जब भी थाने के प्रभारी अधिकारी को किसी भी अपराध की सूचना दी जाये या उसे यह प्रतीत हो कि कोई ऐसा अपराध किया गया है जिसकी जाँच करने के लिए वह शसक्त है तो वह :-
- ऐसे अपराध की जाँच कर रिपोर्ट तैयार कर तुरंत उस मजिस्ट्रेट के पास भेजगा जो ऐसे अपराध पर पुलिस द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट पर संज्ञान लेने के लिए शसक्त हो।
- ऐसे मामलों के तथ्यों एवं परिस्थितयों की जाँच करने के लिए और यदि आवश्यकता हो तो अपराधी का पता लगाने और गिरफ़्तारी के लिए उस स्थान पर पुलिस अधिकारी स्वयं जायेगा या अपने अधीनस्थ अधिकारी को इस मामले के लिए नियुक्त करेगा।
- ऐसी सूचना किसी व्यक्ति के खिलाफ नाम देकर दी गयी हो और पुलिस अधिकारी की राय में अपराध गंभीर प्रकृति न हो,
- उसे यह प्रतीत हो की जाँच शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार न हो।
जाँच में क्या होता है और क्यों होती है ?
किसी भी अपराधी को पकड़ने के लिए पुलिस अघिकारियों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है जो लम्बी व् कष्टदायक भी होती है। अपराध के घटने की सूचना मिलने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने से लेकर जाँच शुरू कर दौरान आरोप पत्र पेश करने तक पुलिस अधिकारी को कई प्रक्रिया से गुजरना होता है जैसे कि:-
- संज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्त होने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करना,
- घटना स्थल पर स्वयं टीम के साथ पहुंचना व् उस स्थल का मानचित्र तैयार करना,
- घटना स्थल पर उपस्थित गवाहों के बयांन अभिलिखित करना,
- घटना स्थल पर पायी जाने वाली सभी घटना से सम्बंधित वस्तुओं को अपने कब्जे में लेना व् उसको सील कर मुहर लगाना,
- खून से सने कपड़ो को कब्जे में लेकर रसायनिक लैब में जाँच के लिए भेजना व् रिपोर्ट प्राप्त करना,
- अभियुक्त से सम्बंधित कोई लिखावट, हाथो के नीसान या अन्य वास्तु में उसके हाथो के निसान पाए जाने वाले वस्तु को प्रशिक्षण के लिए लैब भेजना,
- घटना स्थल की फोटो लेना, स्थान की तलासी लेना आदि,
- आरोपी की गिरफ़्तारी करना व् आवश्यकता अनुसार रिमांड पर लेना,
- अभियुक्त एवं उसकी संपत्ति आदि की पहचान,
- आरोप पत्र व् अंतिम रिपोर्ट तैयार कर न्यायालय के समक्ष पेश करना।
किसी अपराध में जाँच का महत्व क्या है ?
- आपराधिक न्यायिक प्रक्रिया के लिए यह अत्यंत आवश्यक होता है कि अपराध की जाँच की जाये क्योकि यह न्यायिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग है।
- संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर थाना प्रभारी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के बाद दूर मुख्य कार्य उस अपराध की जाँच करना होता है।
- पुलिस अधिकारी द्वारा की गयी अपराध की जाँच का मुख्य उद्देश्य अपराध के तथ्यों व् अपराधी का पता लगाना होता है।
- इस प्रकार जाँच के जरिये पुलिस अधिकारी अपराधी का पता लगाने का अपना पूर्ण प्रयास करती है और पता लगा भी लेती है।
Re-investigation यानी पुनः जाँच से क्या मतलब है व् कब होती है ?
Re-investigation यानी पुनः जाँच किसी भी घटना की तब होती है जहाँ किसी विशेष न्यायाधीश ने ऐसे मामले का संज्ञान पुलिस अधिकारी द्वारा जाँच के बाद समक्ष पेश किये गए आरोप पत्र के आधार पर लिया हो और उस न्यायधीोष को प्रतीत हो की पुलिस अधिकारी ने ऐसी जाँच भृष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 5 क के समादेशात्मक प्रावधानों का उल्लंघन किया है। तो ऐसे मामले में न्यायाधीश पुनः जाँच के आदेश दे सकेगा।
investigation यानी जाँच करने की पुलिस अधिकारीयों की शक्ति से क्या मतलब है ?
Investigation जिसको हिंदी में जाँच कहते है। इसका मतलब छान बीन करना होता है। जहाँ किसी घटना के घटित होने की जानकारी घटना के घटित होने वाले क्षेत्र के पुलिस अधिकारी यानी उस थाने के थाना प्रभारी को दी जाती है। ऐसी घटना संज्ञेय अपराध से संबंधित होती है तो उस थाने के थाना प्रभारी को यह पूर्ण अधिकार होता है कि उस संज्ञेय अपराध की जाँच करे। जहाँ अपराध संज्ञेय अपराध की प्रकृति का है वहाँ पर पुलिस अधिकारी क्षेत्र के मजिस्ट्रेट आदेश के बिना भी जाँच कर सकता है। यह पुलिस अधिकारी का संवैधानिक अधिकार है।
संज्ञेय अपराध के मामले पुलिस अधिकरी द्वारा की गयी किसी भी कार्यवाही को किसी भी चरण में उसपर इस बात पर सवाल नहीं उठाया जायेगा कि वह मामला ऐसा था जिसमे जाँच करने वाला पुलिस अधिकारी इस धारा के अंतर्गत जाँच करने के लिए शसक्त था।
ऐसे किसी मामले की जाँच करने का आदेश ऐसे किसी मजिस्ट्रेट द्वारा भी दिया भी दिया जा सकेगा जो कि अधिनियम की धारा 190 के तहत जाँच करने के आदेश देने के लिए शसक्त था।
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